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२५(१७)
ओसवाल वंश की उत्पत्ति कथा २५(१) धरणेन्द्र - पद्मावती द्वारा सेवित पार्श्वनाथ भगवान
(१) प्रथम गणधर श्री शुभदत्तजी (२) गणधर भगवंत चतुर्विध संघ को उपदेश दे रहे हैं । (३) श्री आर्य समुद्रजी (४) श्री केशी गणधर – प्रदेशी राजा और चित्रसार से ओसवंश ।
(ओसवालों की उत्पत्ति कथा : प्रभु महावीर के निर्वाण के ७० वर्ष पश्चात श्री पार्श्वनाथ प्रभु सन्तानीय छट्टवें पट्टधर आ. श्री रत्नप्रभसूरिजी की प्रेरणा से उपकेशपुर - ओसियामें राजा, सामंत आदि हजारों क्षत्रिय और शेट साहुकार जैनधर्मी बने । अत एव महाजन
ओसवाल वंश की स्थापना हुई । यह कथा 'हिताहित बोध' का उदाहरण है, देखिये स्तवन गाथा-४ । कथा के चित्रों का वर्णन नीचे
दिया है ।) २५(१०) तीन देवियाँ आकाश में गईं । चामुंडा देवी द्वारा आचार्यजी को वर्षाऋतु चातुर्मास की विनती की गई । उपलदेव वीर के जमाई उहड शेठ रत्नो
से भरा हुआ थाल लाए । उसी समय तांतेड गोत्र की स्थापना हुई। २५(११) स्वयंप्रभसूरिजी, पद्मावती देवी, सिद्धायिका देवी, चक्केसरी देवी, अंबिका देवी, रत्नचूड विद्याधर, श्री रत्नप्रभसूरि ।
श्री रत्नप्रभसूरिने ५०० साधुओं के साथ आकर ओसिया नगर में चामुंडा देवी को प्रतिबोधित किया । २५(१२) श्री ओसिया माताजी के मंदिर में सौ घरों से आने वाले जीवित भैंस तथा बकरों को छुड़वाकर उनके स्थान पर नैवेद्य चढाएँ और वहाँ गोत्र की
स्थापना की । देवी के नेत्रों में वेदना की । २५(१३) १८ गोत्र की स्थापना की । ३,८४,००० राजपुत्रों को प्रतिबोधित किया । २५(१४) सत्यकाजी आचार्य भगवंत का आदर सत्कार करके उन्हें लाते हैं । २५(१५) संघ के साथ महावीरस्वामी की मूर्ति को लेने जाते हैं। २५(१६) आचार्यजीने श्री ओसियाजी में महावीरस्वामी के मंदिर की प्रतिष्ठा मूलरूप से (स्वयं) की और कोरटा में महावीरस्वामी के मंदिर की प्रतिष्ठा
वैक्रिय रूपसे की। २५(१७) श्री सत्यकाजी व्याख्यान ध्वनि सुनते हैं । उहड शेठ की गाय मंदिर के पास जाकर दूध की धार बहाती है ।
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