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अथ सामान्य कलशरुप पंचविंशतितम स्तवनम्
|| काल बोलवानी देशीमां ||
কका
चोणिजिन गुण गाईयें. ध्याईयें तत्त्व स्वरूयो जी। परमानंद पद पाईयें, अक्षय ज्ञान अनूपो जी।। चौदीशे.॥१॥
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