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शुद्धता, एकता और तीक्ष्णता का स्वरूप और उनकी प्राप्ति का उपाय है, आत्मा में परमात्मभाव की भावना । यह बताकर ग्रन्थकार महर्षि ने प्रभुभक्ति के प्रभाव से अपने जीवन में अनुभूत अपूर्व भावोल्लास के एक मधुर प्रसंग को यहाँ प्रस्तुत किया है, जो भक्त साधकों के लिए अत्यन्त प्रेरणादायक है -
प्रभु के दर्शन, वन्दन, पूजन और आज्ञा पालन से आत्मा में अपूर्व भावोल्लास जागता है, हृदय पुलकित बनता है । भावोल्लास द्वारा ज्ञान की शुद्धता, चारित्र की एकता और तप तथा वीर्य की तीक्ष्णता सिद्ध होने पर आत्म समाधि प्रकट होती है । इस समाधि-दशा में अद्भुत आत्मिक आनन्द का अनुभव होने से भवभ्रमण का भय भाग जाता है और अल्पकाल में ही सम्पूर्ण शाश्वत सुखरूप सिद्धता प्रकट होने की दृढ प्रतीति होती हैं ।
इस प्रकार प्रभुभक्ति की अपूर्व महान् महिमा जानकर सर्व मुमुक्षु आत्माओं को श्री जिनेश्वर प्रभु की परम भक्ति में सदा तन्मय बनने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।
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