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________________ ११७ १३९ १५३ १७१ १९१ २०७ २२५ अनुक्रमणिका क्रम स्तवन विषय प्रकाशकीय निवेदन . जिन भक्ति की महिमा, ग्रन्थ और ग्रन्थकार का संक्षिप्त परिचय १ श्री ऋषभ जिन स्तवन प्रभु प्रीति की रीति बताई गई है। २ श्री अजितनाथ जिन स्तवन कार्य कारण भाव की साधना बताते हुए प्रभु भक्ति की प्रधानता बताई है । ३ श्री संभवनाथ जिन स्तवन प्रभु-सेवा की पुष्ट निमित्तता बताई है। ४ श्री अभिनंदन जिन स्तवन प्रभु की रसीली प्रीति और पराभक्ति की पूर्व भूमिका बताई है। ५ श्री सुमति जिन स्तवन परमात्मा की शुद्ध दशा का चिन्तन करते हुए उनकी सेवा करना ही स्वशुद्ध स्वरूप की प्राप्ति का श्रेष्ठ उपाय है। ६ श्री पद्मप्रभ जिन स्तवन प्रभुगुण की महिमा बताकर उनकी निमित्त कारणता सिद्ध की है और नयसापेक्ष प्रभु दर्शन का स्वरूप बताया है। ७ श्री सुपार्श्व जिन स्तवन प्रभु के अनन्त गुणों का अनंत आनंद बताया है । ८ श्री चन्द्रप्रभ जिन स्तवन प्रभु सेवा की विशालता, उत्सर्ग सेवा और अपवाद सेवा का स्वरूप सात नयों की अपेक्षा से ९ श्री सुविधिनाथ जिन स्तवन परमात्म दर्शन से आत्मदर्शन की प्राप्ति होती है । १० श्री शीतलनाथ जिन स्तवन प्रभुगुण की अनन्तता, जगत् पर प्रभु आज्ञा का साम्राज्य, प्रभुध्यान के फलरुप में अक्षय सुख की प्राप्ति ।। ११ श्री श्रेयांसनाथ जिन स्तवन प्रभु के गुणों का ज्ञान, स्मरण, ध्यान द्वारा आत्म स्वरूप में तन्मयता । १२ श्री वासुपूज्य जिन स्तवन प्रभु पूजा के तीन प्रकार बताये हैं। १३ श्री विमलनाथ जिन स्तवन प्रभु के निर्मल स्वभाव का ध्यान करनेवाला अपने उस प्रकार के शुद्ध स्वभाव को प्रगट करता है। १४ श्री अनन्तनाथ जिन स्तवन प्रभु के नाम और प्रभु की मूर्ति की परम उपकारता । १५ श्री धर्मनाथ जिन स्तवन आत्मा और परमात्मा के एकत्व की भावना तथा सामान्य और विशेष स्वभाव के स्वरुप । १६ श्री शांतिनाथ जिन स्तवन 'जिन पडिमा जिन सारीखी' की नयसापेक्ष सिद्धि बतायी है । १७ श्री कुंथुनाथ जिन स्तवन प्रभुदेशना की महत्ता-गंभीरता । श्री अरनाथ जिन स्तवन चार प्रकार के कारणों का वर्णन कर पुष्ट निमित्त श्री जिनेश्वर परमात्मा के अवलंबन का उपदेश । १९ श्री मल्लिनाथ जिन स्तवन षट्कारक की बाधकता और साधकता के स्वरुप को बताकर प्रभु सेवा का महत्त्व बतलाया है । २० श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन षटकारक के लक्षण और पुष्ट निमित्त-रुप परमात्मा के आलंबन द्वारा उपादान शक्ति प्रकट होती है, यह सिद्ध किया गया है । २१ श्री नमिनाथ जिन स्तवन वर्षाऋतु में विविध घटना के साथ प्रभु सेवा के माहात्म्य का अद्भुत वर्णन । २२ श्री नेमिनाथ जिन स्तवन राजीमती की अनुप्रेक्षा, प्रशस्त राग गुणीजन के संसर्ग से उत्तम फल की प्राप्ति । २३ श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवन शुद्धता, एकता और तीक्ष्णता का स्वरूप बताया है । २४ श्री महावीर जिन स्तवन स्वदुष्कृत की गापूर्वक भक्ति पूर्ण हृदय से संसार से पार उतारने की प्रभु से प्रार्थना । २५ सामान्य कलशरूप स्तवन चौबीस जिन गुणग्राम, उनके गणधर एवम् चतुर्विध संघ का वर्णन, हिताहित बोध, देवचंद्रजी गुरू परंपरा और तीर्थयात्रा का विवेचन । २५९ २६९ २८३ ३०१ ३२९ ३७७ ३९१ ४०५ ४२१ ४४७ ४६७ ४९८ ग्रंथ स्थित मुश्किल और पारिभाषिक शब्दों के अर्थ • चित्रों का साभार स्वीकार ५०४ Jain Education International For Personal & PyoUse Only www.jainellbrary.org
SR No.005524
Book TitleShrimad Devchandji Krut Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremal Kapadia
PublisherHarshadrai Heritage
Publication Year2005
Total Pages510
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size114 MB
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