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दिया है । 'ध्यान चतुष्पदी' में 'ज्ञानार्णव' ग्रन्थ के आधार से ध्यान का स्वरुप बताया है । साथ ही अध्यात्म, भावना, ध्यान, समता और वृत्तिसंक्षेप योग का भी गर्भित रीति से संकलन किया है । ये ग्रन्थ उनकी अध्यात्म और ध्यान योग की तीव्र रुचि और प्रीति को बताते हैं । अतीत और वर्तमान विहरमान जिनेश्वर भगवन्तों के गुणकीर्तनरुप स्तवन उनके हृदय में अस्खलित प्रवाहबद्ध प्रवाहित प्रभुभक्ति की पराकाष्ठा को सूचित करती है । उनके सहज रूप से अद्भुत उद्गार सुनने से तनमन पुलकित हो उठते हैं । विशाल शास्त्र के साथ ही स्वानुभव के पाये पर रचित यह स्तवन भावुक आत्माओं के हृदय पर शीघ्र ही सीधा असर करते हैं । अर्थज्ञान के साथ संगीत के सुरीले स्वरों में उनका गान करने से अलौकिक आनन्द का अनुभव होता है।
अन्तः स्फुरणाओं की सहज अभिव्यक्ति ही उत्तम कविता है | भाषा के अलंकारों को कविता में उतारना सरल है परन्तु हृदय के उच्च भावों को सहज रीति से कविता में उतारना कठिन काम है । इस दृष्टि से उनकी तात्त्विक कविता साहित्य की एक उत्कृष्ट रचना है, ऐसा निर्विवाद रुप से कहा जा सकता है।
अनुभव ज्ञान : उनमें व्यवहार चारित्ररुप पंच महाव्रत तथा समिति-गुप्ति आदि की विशुद्ध आराधना के बल से निश्चय चारित्र अर्थात् आत्मानुभव भी सुन्दर रीति से जगमगा रहा था । यह बात उनके उद्गारों से भी स्पष्ट समझी जा सकती है :
तीन भुवन नायक शुद्धातम, तत्त्वामृतरस वूट्यो रे । सकल भविक लीलाणो, मारूं मन पण तूट्यो रे ।।१।। मनमोहन जिनवरजी मुझने, अनुभव-प्यालो दीधो रे । पूर्णानन्द अक्षय अविचल रस, भक्ति पवित्र थई पीधो रे ।।२।। ज्ञान सुधा लीलानी लहेरे, अनादि विभाव विसार्यो रे । सम्यग्ज्ञान सहज अनुभव रस, शुचि बोध संभार्यो रे ।।३।। देहगेह भाडा तणो, ए आपणो नाहिं । तुज गृह आतमज्ञान ए, तिहमांहि समाहि ।।४।। पंच पूज्यथी पूज्य ए, सर्व ध्येय थी ध्येय ।। ध्याता ध्यान अरु ध्येय ए, निश्चय एक अभेय ।।५।। अनुभव करताँ एहनो, थाये परम प्रमोद ।
एकरुप अभ्याससु, शिवसुख छे तसु गोद ।।६।। तत्त्वज्ञान गर्भित अनेक उत्तम ग्रन्थरत्नों का सर्जन कर उन्होंने श्री जैन संघ को जो अपूर्व भेट दी है, उसे जैन संघ कदापि नहीं भूल सकता । उनकी पुनित निश्रा में श्री तीर्थयात्रा संघ, जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा आदि शासन-प्रभावना के अपूर्व कार्य भी अनेक हुए थे । राजनगर के आंगन में उन्हें 'वाचक पद' दिया गया था । उनका स्वर्गवास भी सं. १९८२ भाद्रपद कृ. अमावस्या के दिन राजनगर में ही हुआ था ।
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