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वर्षाऋतु में जैसे बगुलों की पंक्ति देखी जाती है, वैसे जिनभक्ति में प्रशस्त लेश्याएँ उत्पन्न होती हैं । वर्षाऋतु मे हंस पक्षी सरोवर में जाकर रहता है, वैसे जिनभक्ति के योग से मुनि ध्यानारूढ होकर उपशम या क्षपकश्रेणी में रहता है ।
वर्षाऋतु में चारों दिशाओं के मार्ग बन्द हो जाते हैं, वैसे जिनभक्ति से चारों गतियों का भ्रमण रुक जाता है । वर्षाऋतु में लोग अपने घरों में ही रहते हैं और आनन्द करते हैं, वैसे अनादिकाल से विषय-कषायरूप परभाव में भटकता हुआ चेतन जिनभक्ति द्वारा अपने स्वरूप को पहचानकर निजस्वभाव में ही रहता है और समता-सखी के साथ मौज करता है ।
वर्षा के दिनों में जैसे मोर हर्षित होकर नाचने लगता है, वैसे जिनभक्ति में तन्मय बना हुआ सम्यग्द्रष्टि आत्मा श्री जिनेश्वर प्रभु के प्रशांत-रस परिपूर्ण अलौकिक रूप को देखकर परमानन्द का अनुभव करता है । वर्षा के समय जैसे जलधाराएँ बहने लगती हैं, वैसे जिनभक्ति के समय में प्रभु के गुणगान का प्रवाह बहने लगता है । वर्षा के समय में जैसे वे जलधाराएँ भूमि पर बहकर सरोवरादि में स्थिर हो जाती हैं वैसे प्रभु गुणगान का प्रवाह धर्मरुचिवाले आत्माओं के हृदय में प्रविष्ट होकर स्थिर हो जाता है ।
चातक पक्षी वर्षाऋतु की मेघ-धाराओं का पान करके अपनी तृषा को शान्त करता है, वैसे ही जिनभक्ति में तन्मय बना हुआ तत्त्वपिपासु महामुनि सर्व दुःखों को दूर करनेवाले अनुभवरस का आस्वादन करके सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के समय प्रकट हुई तत्त्व-अनुभव-रमणता की पिपासा को शान्त करता है।
वर्षा के समय जैसे जीर्ण-शीर्ण तृण के अंकुर नष्ट हो जाते हैं और नये हरे-हरे तृण अंकुर प्रकट हो जाते हैं, किसान उनका निवारणकर योग्य रीति से भूमि को जोत कर बीज बोता है ; वैसे ही जिनभक्ति द्वारा भव्य जीव अशुभ आचारों का निवारणकर शुभ आचार के पालनरूप देश-विरति आदि के परिणाम उत्पन्न करते हैं।
वर्षाऋतु में वृष्टि के प्रभाव से जैसे बोये हुए धान्य के अंकुर ... वृद्धिगत होते हैं और वे जब पूर्ण वृद्धि को प्राप्त कर लेते हैं तब किसान उनको अपने घर में ले जाकर कोठार में भर देता है, वैसे
ही जिनभक्तिरूप वृष्टि के प्रभाव से पांच महाव्रतों का निरतिचाररूप से पालन करने से उनकी विशुद्धि ज्यों ज्यों बढ़ती जाती है
वैसे वैसे अनन्य क्षायिक दर्शन-ज्ञान-चारित्रादि गुणों की आत्ममन्दिर में निष्पत्ति होती है अर्थात् सब आत्मप्रदेश ज्ञानादि
गुणों से पूर्ण बन जाते हैं। जिस प्रदेश में अच्छी मेघवृष्टि होती है वह प्रदेश धान्यादि से ।
समृद्ध बनता है और सर्वत्र सुकाल प्रवर्तित होता है । जिससे उस प्रदेश की प्रजा बहुत आनन्द और सुख-समृद्धि को प्राप्त करती है, न इसी तरह जिनदर्शन (सम्यग्दर्शन, जिन-शासन या जिन-मूर्ति के दर्शन) और जिनभक्ति के प्रभाव से परमानन्द की प्राप्ति होने पर आत्मा के असंख्य प्रदेशों में अनन्त गुण-पर्याय की पूर्णता प्राप्त होती है।
जिनभक्ति का महान फल मोक्ष-प्राप्ति है । यह जानकर अहर्निश जिनभक्ति और जिनाज्ञापालन में तत्पर बनना चाहिए ।
व आत्मप्रदेश ज्ञानादि
જીવનમાં આપેલા ચિત્રોનું વિવરણ. ૨૧(૧) શ્રી નમિનાથ ભગવાન ૨૧(૨) જંબૂવૃક્ષ - જેના ઉપર અનાદત દેવનો વાસ છે २१(3) १८००० शाखांग रथ, गाथा - 3. ४६ हा प्रारना निगमायोने वितुं चित्र छे. ૨૧(૪) છ વેશ્યા દર્શાવતું વૃક્ષ, જુઓ ગાથા - ૩, સંસારી જીવોના શુભાશુભ અધ્યવસાય સાથે સંબંધ ધરાવે છે. ૨૧(૫) છ વેશ્યા દર્શાવતું વૃક્ષ ૨૧(૬) બલરામ મુનિ - કરણ-કરાવણ ને અનુમોદન સરીખાં રૂપ નીપજાયો. ત્રણેયનો ઉત્તમકોટિનો એક જ ભાવ (શુભ લેશ્યા)
બળદેવ મુનિ : તપ આદિ દ્વારા સંયમનું પાલન કરે છે. (કરણ) सुथार : सुपात्रहानद्वारा संयम-पालन सहाय ४२.छ. (४२११४) હરણ : હું ક્યારે આવું કરીશ ? ધન્ય છે આ બન્ને ને ! (અનુમોદન) ઝાડની ડાળી પડતાં ત્રણેય પાંચમા દેવલોકે જાય છે.
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