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अथ पंचदश श्री धर्मनाथजिन स्तवनम्
॥ सफल संसार अवतार ए हुं गणुं- ए देशी ॥
धर्म जगनाथनोधर्मशुचि गाईए, आपणोआतमा तेहवोभावियें। जाति जसु एकता तेह पलटे नहीं, शुद्ध गुण यन्जवा वस्तुसलामयी
॥१॥
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