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अथ चतुर्दश श्री अनंतजिन स्तवनम्
॥ दीठी हो प्रभु दीठी जग गुरु तुज - ए देशी ||
मूरतिहो प्रभुमतिअनंत जिणंद, लाहरीहो प्रभुताहरीमुझ नयणेक्सीजी समताहोग्रभुसमतारसनो कंद, सहेजें हो नमुसहेजें अनुभव रसरूसीजी
॥ी
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