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अथ एकादश श्रीश्रेयांसजिन स्तवनम्
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। प्राणी वाणी जिनतणी, तुमे धारो चित्त मझार रे- ए देशी।
श्रीश्रेयांस प्रभुतणो, अति अन्द्रत सहजानंदरे। गुण एकविध त्रिक परिणम्यो, एम गुण अनंतनोवृंदरेण मुनिचंद निणंद अमंद दिणंद परें, नित्य दीपतो सुखकंदरे॥१॥
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