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जिनागमों में प्रभुवन्दन, प्रतिमापूजन, महाव्रत संयमपालन का जो हित, सुख और मोक्षरूप फल बताया है, वह एक समान है । अत: द्रव्यपूजा भी शुद्धतापूर्वक अवश्य करनी चाहिए जिससे आत्मा में सम्यग्दर्शनादि गुणों की प्राप्ति और वृद्धि हो ।
द्रव्य पूजा में होनेवाली स्थावर की हिंसा भावहिंसा नहीं है क्योंकि आत्मगुण की वृद्धिरूप भावदया का वह कारण है और भावदया मोक्ष का कारण
जिनागमों में द्रव्य-हिंसा को भावहिंसा का कारण माना है वह विषय कषाय के लिए होनेवाली हिंसा है । परन्तु प्रभु गुण का बहुमान करनेवाले व्यक्ति को पुष्पपूजा के समय होनेवाली स्वरूपहिंसा भावहिंसा का कारण न होने से अनुबंधहिंसा नहीं है । अत: आत्मार्थियों को भावोल्लासपूर्वक प्रभुपूजा करनी चाहिए।
आत्मसाधना का प्रथम सोपान प्रभुपूजा है, इससे तीनों योगों की स्थिरता होती है । इसके पश्चात् अनुक्रम से स्तोत्रपूजा, जाप, ध्यान और लय अवस्था प्राप्त होती है । इसके सतत अभ्यास से क्रमश: आत्मतत्त्व का अनुभव अर्थात् साक्षात्कार होता है ।
સ્તવનમાં આપેલા ચિત્રોનું વિવરણ ૧૦(૧) શ્રી શીતલનાથ ભગવાન ૧૦(૨) સૂરિમંત્ર પટ - શુદ્ધાશય સાથે સૂરિમંત્રના જાપ કરવાથી અવશ્ય અનંત અવ્યાબાધ સુખની પ્રાપ્તિ થાય છે. જુઓ ગાથા-૬ ૧૦(૩) શ્રી શીતલનાથ ભગવાન - પ્રભુ આલંબન દ્વારા એમના ગુણોની અનંતતા જાણી શકાય છે.
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