________________
अथ नवम श्री सुविधिनायजिन
स्तवनम्
|| थारा महेला उपर मेह जरूखे बीजली हो लाल - ए देशी ॥
दीठो सुविधि जिणंद, समाधि से भर्यो,होलालास. भास्योआत्मस्वरूप, अनादिनी वीसो होलाल. सकल विभाव उपाधि, थकीमन ओमर्यो,होलानाथ सत्तासाधन मार्ग, भणी एसंचर्यो,होलाल||भण॥१॥
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International