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________________ क्रम दृष्टि १० (१) नय (२) दृष्टि और (३) गुणस्थानक की अपेक्षा से दोनों प्रकार की सेवा अपवाद भावसेवा गुणस्थानक प्रभुगुण का संकल्प... १से ४ सम्यक्त्व-अभिमुख प्रभुसत्ता के साथ तुल्यता... ४-५ प्रभुगुण में रमणता... धर्मध्यानरूप आत्मस्वभाव में निश्चलता... शुक्लध्यान के प्रथम पाये का चिन्तन... शुक्लध्यान के प्रथम पाये के अन्त में... शुक्लध्यान का दुसरा पाया निर्विकल्प-समाधि प्राप्त होने पर... अपवाद भावसेवा दृष्टि गुणस्थानक क्षायिक सम्यक्त्व... आत्मसत्ता में रमणता. अप्रमत्तदशा में अपूर्व गुणप्राप्ति... क्षपकश्रेणिगत आत्मशक्ति... ९-१० क्षायिक-यथाख्यात-चारित्र... १२ सयोगी-केवली गुणस्थानक.. केवलज्ञानी अयोगी-केवली गुणस्थानक... केवलज्ञानी १२ नय नैगमनय संग्रहनय व्यवहारनय ऋजुसूत्रनय शब्दनय समभिरूढनय एवंभूतनय नय नैगमनय संग्रहनय व्यवहारनय ऋजुसूत्रनय शब्दनय समभिरूढनय एवंभूतनय क्रम ८ १४ सेवा साधक की साधना का मापदण्ड (थर्मोमीटर) है । महापुरुषों द्वारा बताये गये इस मापदण्ड द्वारा हम अपनी आध्यात्मिक भूमिका का माप कतिपय अंशों में निकाल सकते है और आगे की उच्च भूमिकाओं को प्राप्त करने का उपाय जानकर उसकी प्राप्ति हेतु प्रबल पुरुषार्थ करने की प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं । સ્તવનમાં આપેલા ચિત્રોનું વિવરણ ૮(૧) શ્રી ચંદ્રપ્રભસ્વામી (૨) શ્રી ચંદ્રપ્રભસ્વામી નિર્વાણ ૮(૩) ભરત મહારાજાએ અનિત્ય ભાવના ભાવતાં આરિસાભવનમાં ક્ષપકશ્રેણિ માંડી કેવળજ્ઞાન પ્રાપ્ત કર્યું. (જુઓ ગાથા-૭) ૮(૪) ક્ષપકશ્રેણિ માંડતા મેતાર્ય મુનિવર. ૩ અને ૪ નંબરનાં ચિત્રો દ્વારા ઉત્સર્ગસેવા અને ૫ નંબરના ચિત્રથી અપવાદ ભાવસેવા સમજવા યોગ્ય છે. ८(५) श्री सिद्धय यंत्र (अपवाह भाप सेवा-पून) www ainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only १८८
SR No.005524
Book TitleShrimad Devchandji Krut Chovisi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremal Kapadia
PublisherHarshadrai Heritage
Publication Year2005
Total Pages510
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size114 MB
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