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મોક્ષ-પ્રાપ્તિ પણ શ્રી અરિહંત પરમાત્માનું નિમિત્ત મળ્યા વિના થઈ શકતી નથી. કારણ કે ભવ્યાત્માની અનાદિકાલીન કર્મોપાર્જનની પરંપરા પણ પુદ્ગલ પદાર્થોના નિમિત્તથી જ થાય છે. એ પૌદ્ગલિક અશુભ નિમિત્તતા શ્રી અરિહંત પરમાત્માના શુભ નિમિત્તના આલંબન વિના દૂર થઈ શક્તી નથી. તેથી જ શ્રી અરિહંત પરમાત્માના નામાદિ એ જ મોક્ષના નિયામક-નિશ્ચિત હેતુ છે.
छट्टे स्तवन का सार....
इस स्तवन में निमित्तकारण की यथार्थता और प्रभुदर्शन का महत्त्व बताया है । श्री अरिहन्त परमात्मा के दर्शन के निमित्त से ही आत्मा की सत्तागत शक्तियों का प्रकटीकरण होता है, उसके बिना नहीं हो सकता ।
प्रभु का दर्शन अर्थात्- साक्षात् अरिहन्त के दर्शन में कारणभूत प्रभुमूर्ति का दर्शन । अथवा, साक्षात् श्री अरिहन्त परमात्मा के दर्शन में उत्कृष्ट कारणभूत जिनशास्त्र । अथवा, साक्षात् आत्मदर्शन में उपादान कारणभूत सम्यग्दर्शन ।
नय की अपेक्षा से प्रभुदर्शन :
(१) नैगमनय की अपेक्षा से प्रभुदर्शन अर्थात् मन, वचन और काया की चपलता के साथ मात्र चक्षु से होने वाला प्रभुमूर्ति का दर्शन । (२) व्यवहारनय की अपेक्षा से प्रभुदर्शन अर्थात् आशातना टालने पूर्वक बन्दन- नमस्कार सहित प्रभुमुद्रा (प्रभु के शरीर ) को देखना । (३) ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा से प्रभुदर्शन अर्थात् योगों की स्थिरता के साथ उपयोग पूर्वक प्रभुमुद्रा को देखना ।
(४) शब्दनय की अपेक्षा से प्रभुदर्शन अर्थात् आत्मसत्ता प्रकट करने की रुचिसहित प्रभु की तत्त्व- सम्पत्तिरूप प्रभुता का अवलोकन करना ।
इस प्रकार शब्दनय से प्रभु का दर्शन करने से संग्रहनय की अपेक्षा से सत्ता में रही हुई अनन्त आत्म-शक्तियाँ एवंभूतनय की दृष्टि से शुद्ध हे परन्तु जब उसका शुद्ध-स्वरूप सम्पूर्णरूप में प्रकट होता है तब वह एवंभूतनय की दृष्टि से पूर्ण शुद्ध-स्वरूप को पाकर सिद्ध होता है । मिट्टी, पानी, सूर्य, उत्तरसाधक और पारस के उदाहरणों से मोक्ष के पुष्ट हेतु-निमित्त कारण की महत्ता बताई है ।
मोक्षप्राप्ति भी श्री अरिहन्त परमात्मा का निमित्त मिले बिना नहीं हो सकती । क्योंकि भव्यात्मा की अनादिकालीन कर्मोपार्जन की परम्परा भी पुद्गल पदार्थों के निमित्त से ही होती है । यह पौद्गलिक अशुभ- निमित्तता श्री अरिहन्त परमात्मा के शुभ- निमित्त के आलम्बन बिना दूर नहीं हो सकती । अतः श्री अरिहन्त परमात्मा के नामादि ही मोक्ष के नियामक निश्चित हेतु हैं ।
સ્તવનમાં આપેલાં ચિત્રોનું વિવરણ ૬(૨) શ્રી સૂરિમંત્ર પટ
૬(૧) શ્રી પદ્મપ્રભસ્વામી ભગવાન ૬(૩) શ્રી સમેતશિખરજી તીર્થ ૬(૪) ડ્રીંકા૨માં ૨૪ તીર્થંકર પરમાત્મા - આ યંત્ર-તીર્થ અને તીર્થંકર પરમાત્માના દર્શનથી આત્મસંપદાનું પ્રગટીકરણ થાય છે.
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