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अथ पंचम श्री सुमतिजिन
स्तवनम्
॥ कडखानी देशी ॥
अहो श्री सुमतिजित शुद्धता ताहरी, स्वगुण पर्याय परिणाम रामी। नित्यता एकता अस्तिता इतर युत, भोग्य भोगीयको प्रभुप्रकामी
अहो.॥१॥
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