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घणगजि-विज्जुतट्ठा ! सरणं रयणीसु कं पवज्जिस्सं । गलइ कुडीरं पि इमं निवडते नीर - पूरम्मि
निट्ठिय- चिरंतन - धणा किं देमि अहं रुयंत - डिंभाणं ? | अहह! विहिणा अहं चिय विणिम्मिया दुक्ख - कुलभवणं
सिरिसोमप्पहायरियविरइआ
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तओ चिंतियं मयणेण - हा! वराईओ रमणीओ पइ-विरहे एवंविहं दुत्थावत्थं अणुभवंति, चंडा-पयंडाओ वि मह विरहे महंतं दुक्खमावन्नाओ भविस्संति त्ति सोगसंगलंत-जलेण तरंगियाइं नयणाइं मयणस्स । भणिओ सो विजुलाए नाह! किमेवमुव्वेयकारणं? | निब्बंधे य सिट्ठो अणेण पुव्व-भज्जा - संभरण - वइयरो । दूमिया इमा चित्तेण । अदंसिय-वयण-वियाराए भणियमणाए - नाह! जइ एत्तियं हियय दुक्खं तो तत्थ गंतूण किं न कीरइ रई तासिं ? । मयणेण भणियं-पिए ! जइ तुमं विसञ्जेसि। तीए भणियं - संपयं पंक- दुग्गमा मग्गा, विसमाओ गिरि-नईओ, ता न तीरइ गंतुं, वित्ते पाउसे वच्चिज्जासि । तव्वयणेण ठिओ सो । अह पयट्टे फुट्टंत-कंदोट्ट संघट्टे भमंतालि-थट्टे विसट्टंत दोघट्ट - मरट्टे सरय-समए विजुला - समप्पिय-करंबय पाहेज्जं घेत्तूण निग्गओ कुसत्थलाभिमुहं । वच्चंतो य पत्तो कमेण दिवस - पहर - दुग - समए गाममेक्कं । वीसंतो तत्थ सरोवर-तीरतरू- तले । तओ पक्खालिय-कर-चलणो कय-देव-गुरु- सुमरणो भोत्तुमणो चिंतिउं पवत्तो
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जइ एज को वि अतिही चक्खुपहं मे इमम्मि समयम्मि । ता सुकय-लेसमञ्जेमि तस्स दाऊण गासद्धं
एक्के गुण जियं जयं पि कारण निग्गुणेणावि । काउं परेसि सद्दं जो भुंजइ थेव-भक्खं पि
ते च्चिय जयम्मि धन्ना ताण गया पाणि-पल्लवे लच्छी । अतिहि -संविभागं काऊण सया वि भुंजंति
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एवं चिंतयंतेण तेण दिट्ठो पासवत्ति - देवउलाओ निग्गओ गामं पइ पत्थिओ भाससमुद्धूलियंगो जडा-मउड - वेढिय - सिरो पुडिया - वावड करो तवस्सी । तओ पहट्ट
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