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जैन संस्कृत साहित्य का इतिहास : एक महत्त्वपूर्ण प्रयत्न
लेखक : अगरचन्द नाहटा, बीकानेर. जैन साहित्य बहुत ही विशाल और वैविध्यपूर्ण है । भारतकी प्रायः सभी भाषाएं और सभी उपयोगी विषयों में वह रचा गया है । भगवान महावीर ने तत्कालीन जनभाषा अर्धमागधी में उपदेश दिया था जिसे उनके प्रधान शिष्य गणधर ने मूलरूप में संकलित किया । वह लगभग एक हजार वर्ष मौखिक रूपसे (गणधरो के संकलित आगमों के रूप में) चलता रहा । परवर्तित प्राकृत साहित्य श्वेताम्बर सम्प्रदाय का माहाराष्ट्री और दिगम्बर सम्प्रदाय का शौरसेनी में रचा गया है । आगे चलकर जब संस्कृत का भी प्रभाव बहुत अधिक बढ़ा तब पहली-दूसरी शताब्दी से संस्कृत में भी जैन ग्रन्थ रचे जाने लगे । उपलब्ध ग्रन्थों में सब से पहला उल्लेखनीय जैन संस्कृत ग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र है । फिर आचार्य सिद्धसेन समन्तभद्र आदि अनेक विशिष्ट विद्वानोंने प्रौढ़ संस्कृत रचनाएं की जिसका प्रवाह और प्रभाव बढ़ता ही गया । मध्यकालमें जैन विद्वानों ने संस्कृत में भी महाकाव्य, चरितकाव्य, नाटक, कथा और व्याकरण, कोश, छन्द, अलंकार, ज्योतिष. वैद्यक आदि सभी विषयो में प्रचुर साहित्य निर्माण किया । इधर प्राकृत, अपभ्रंश और लोकभाषाओं में भी जैन साहित्य बराबर रचा जाता रहा ।
जैन संस्कृत साहित्य का वैसे तो कई विद्वानोंने अपने ग्रन्थों में संक्षिप्त परिचय दिया है । संस्कृत साहित्य के इतिहास ग्रन्थों में भी जैन संस्कृत साहित्य का कुछ विवरण प्रकाशित होता रहा है । पर समूचे जैन संस्कत साहित्य का कोई भी स्वतन्त्र इतिहास नहीं लिखा गया था । हर्ष की बात है कि इस अभाव की पूर्ति जैन साहित्य के विशिष्ट ज्ञाता प्रो.हीरालाल रसिकलाल कापडिया ने कर दी है । उन्होनें गुजराती में "जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास" नामक ग्रन्थ तैयार करके प्रकाशित करवा दिया है । खेद है कि अभी तक इस की विशिष्ट जानकारी जैन विद्वानों को भी प्रायः नहीं है । इसलिए प्रस्तुत लेख में उसका संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है ।
प्रोफेसर कापडिया ने श्वेताम्बर दिगम्बर दोनो सम्प्रदायों की ज्ञात संस्कृत रचनाओं का विषय वर्गीकरण करके जो विवरण अपने ग्रन्थ में दिया है वह काफी परिश्रम-साध्य और उपयोगी है । उन का यह ग्रन्थ ५० प्रकरणों में विभक्त है । अतः ग्रन्थ काफी बड़ा हो जाने से तीन जिल्दों में छपवाना पड़ा । प्रथम खण्ड में १७ प्रकरण हैं जिन में से पहला प्रस्ताविक, दूसरा सामान्य व्याकरण, हैम पंचांग व्याकरण फिर क्रमश: कोष, छन्द, अलंकार, नाट्य, संगीत, कामशास्त्र, स्थापत्य और मुद्राशास्त्र, गणित निमित्त (ज्योतिष), वैद्यक, पाकशास्त्र, विज्ञान, नीतिशास्त्र (सुभाषित) और इस के बाद व्याकरणादि आठ विषयों के अजैन ग्रन्थों की जैन टीकाओं का विवरण दिया गया है । इस भाग में सर्वजनोपयोगी साहित्य का विवरण देनेसे इस प्रथम खण्ड का नाम "सार्वजनीन साहित्य' रखा गया है । ७२ पृष्ठों का विस्तृत उपोद्घात और अन्त में विशेषनामसूची आदि को लेकर यह ५५० पृष्ठों से भी बड़ा हो गया है । श्री मुक्ति कमल जैन मोहनमाला', बडौदा से सन १९५६में यह प्रथम भाग प्रकाशित हुआ । इसका मूल्य ६ रू.है ।
__प्रस्तुत ग्रन्थ का द्वितीय खण्ड बहुत बड़ा होने से दो जिल्दों में निकाला जा रहा है । पहली जिल्द के १८ प्रकरण (१८ से पैतीस तक में) ललित साहित्य का विवरण दिया गया है । इस में जिनचरित्र, पुराण, प्रकीर्ण चरित्र, प्रबन्ध, व्याश्रय आदि, अनेकसंधानकाव्य, चंपू, गद्यात्मक ग्रन्थ, लघु-पद्यात्मक कृतियां, स्तुतिस्तोत्र, पादपूर्तिकाव्य, विज्ञप्तिपत्र, दृश्यकाव्य-नाटक आदि, और अन्त में जैनेतर ललित साहित्य की जैन टीकाएँ
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