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॥ श्रीस्तंभनपार्श्वनाथस्तोत्रम् ॥ ॥ कर्ता-विजयपद्मसरिः॥
॥ आर्यावृत्तम् ॥ पणिवइऊणं सुमई, मुमइदयं नेमिमूरिगुरुचरणं ॥ सिरियंमणपासथवं, पणेमि परमप्पमोएणं सिरिथंभणपहुबिंबं, गयचउवीसाइ सोलसजिणस्स ॥ तित्थेसरस्स समए, आसादीसावयवरेणं कारवियं तह केई, कहंति सिरिकुंथुनाहनिणसमए। धणिएण मम्मणेणं, कारविया पासपहुपडिमा ॥ ३ ॥ उवएससित्तरीए, कहिय मिणं रामविहियझाणेणं ॥ जलहिजलथंभणाओ, विहियं जं थंभणक्खाए तं सिरिथ्मणपासं, पणमंताणं पमोयमरियाणं ॥ सिद्धी रिद्धी बुड़ी, नियमा होज्जऽच्चगाणं च ॥ ५ ॥ धरणिंदकहियविहिणा, ऽऽयरियामयदेवमूरिणा विवं ॥ पयडिय मेयं सेढी-तडाउ तहसणेण तया । देहामो पणहो, गुरुणो गुरुमुणियपासवुत्तो।। संघो थंमणयपुरं, तहिं पमोया निवासी तत्तो थंभणपासो, ति नाम विइयंति कारणाइ दुवे ॥ तं समरामि हरिसा, सिरिथंभणपास मणुदियई ॥८॥ धण्णा भव्वा पासं, पूअंति थुणंति भत्तिभरहिअया ॥ पासपयंषुयलीणा, घण्णा सरणागया धण्णा सा जीहा सहला मे, जीए थवणं कयं तुह पयाणं ॥ तं चित्तं सुकयत्थं, तईयझाणं कयं जेणं ॥ १० ॥ सहलाई नयणाई, ताई जेहिं च तं पहू दिवो ॥ तं पूइओ पमोया, जेण करो दाहिणो धण्णो भत्तिमरियहियएणं, दिही विणिवेसिया मए विंबे ॥ थंभणपासप्पहुणो, वियसियदेहो तो जाओ ॥ १२ ॥
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