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[:श्री qिoriसरिततिहुयणविक्खायमहं, अचिंतमाहप्पमणहभावयरं ॥ सिरिसिद्धचक्कमणहं, थुणेमि बहुमाणभत्तीए ॥ २ ॥ सिरिसिद्धचक ! भंते !, सुहभावविहियतईयसरणस्स ॥ मह कल्लाणं होही, नियमा बहुमाणसहियस्स ॥ ३ ॥ अइदुक्करं मणोनि-चलत्तणं तंपि सिद्धचक्कस्स ॥ आराहणप्पसाया-हच्छं होज्जाणुभूयमिणं विसयकसाएहितो, दुहाणुभूई तिकालिया जाया ॥ तविलओ मुहझाणा, सिरिनवपयसिद्धचक्कस्स कयकम्महया केई, सहति तिब्वामयप्पपीडं च ॥ दारिदाइविपत्ति, नवपयसंसाहणाभावा केई धणसुयरामा, दुइपीडियचित्तभावणा विहुरा ॥ धम्माराहणवियला, नवपयसंसाहणाभावा इह लद्धदेवियसुहा, सग्गऽपवग्गे सुहाइ णुहति ॥ केई संपतचित्ता, नवपयसेवाणुभावाओ ॥ ८ ॥ विगयाहंगीण सया, जायइ सिरिसिद्धचक्कभत्तिपिई ॥ बहुमाणं विहिरागो, अपमाओ साहणा समए ॥ ९ ॥ अरिहंतसिद्धसूरी, वायगमुणिसम्मदंसणं नाणं ॥ चरणतवे पइदियहं, खणे खणे सरमि हियअम्मि ॥ १० ॥ खीणटारसदोसे, बारसगुणसंजुए पवरकरुणे ॥ अरिहंते भगवंते, वंदमि बहुमाणभत्तीए ॥ ११ ॥ अरुहंते अरहंते, पबोहिया जेसि गुणजुया वाणी ॥ चउतीसइसयललिए, ते हं झाएमि थिरचित्ता ॥ १२ ॥ नामाइवियारगए, झेए परमपत्तनियरूवे ॥ पणदसभेयपसिद्धे, अप्पियळच्छीइसंपुण्णे पुज्जे सिद्धपयत्थे, कम्मढगनाससाहियद्वगुणे ॥ रूवाईयसहावे, सिद्धे समरामि भत्तीए
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