________________
Jain Education International
-.-.
भूगोल-खगोलके गहरे अभ्यासी पूज्य गुरुवर्य आ. श्री विजयधर्मसूरिजी महाराजश्रीए कई साल पहले सूर्यके चारक्त जैसी गति है उसके अनुरुप कंपासके जरिए वलय दो रंगमें बनाकर एक बडा चित्र तैयार किया था । मुझे हुभा कि पूज्य गुरुदेवसे तैयार किए नए बहुमूल्य चित्रोके ब्लोक छपाकर पूज्य गुरुदेवकी स्मृतिमें यह संग्रहणी ग्रंथमे रखनेके लिये यहाँ दिया है। जो कि इस तरह के छपे हुए चित्र पहले दिये ही है।
चित्रके नीचे दिया गया परिचय पूज्यश्रीजीके दस्तस्त्रत है ।
-.-.
-.-.
उनए
नर
.-.-.-.-.
-.-.
For Personal & Private Use Only
मातरम
-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.
aaisa
___सबब
..
...
-.
-.
-.-.-.-..
सक्षिण
आकृति नं-१ आ आकृविमां भीमेपर्वतकी पूर्वरिशामा रहेको सूर्य अर्यान्यन्तरमल मां थी नीकी अनुक्रमे सर्वबा मंडलमा जाय छे, एकदिशाना सूर्य संबंधीज आमंडलो होबाधी आमंडलो अंतर २ + बो०३५ समनj. आगमागे एकदिइजी अपेक्षा भूरलो आपकामा आज्या होय त्या सर्वत्र आज मसान्तर गई।
आकृति नं.३ अनिमा मेकनी पूर्वदिशामा रहेको सूर्य सरूवसरममा चीनी अनुक्रमे सलमंड मेरी पश्चिमरिशमा जाय,अने मवेशी नीली अनुस्मे सर्वाभ्यन्तरमरसे आरे ॥
................
www.jainelibrary.org