SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ ॐ अहँ नमः॥ ॥श्रीमन् मुक्तिकमल जैन मोहनमाला पुष्प-४७॥ प्रवचनप्रभावकसिध्दान्तमहोदधि श्रीमद्श्रीचन्द्रसूरिपुङ्गवप्रणीत प्राकृतभाषा-संस्कृत छायासंकलित संग्रहणीरत्न सुप्रसिद्ध नाम ॥ बृहत्संग्रहणी सूत्र॥ गुजराती अनुवादसह (जिसमें मूल गाथा, छाया गाथार्थ, शब्दार्थ, विस्तरार्थ, पाँच परिशिष्ट, रंग-दो-रंगी कुल मिलाकर ७५ चित्र, संख्याबन्ध यन्त्र, विपुल संख्यामें टिप्पणी, आकृतियाँ, प्रान्ते मूल गाथासंक्षिप्त अर्थ सह, सुविस्तृत उपोद्घात तथा अत्यन्त उपयोगी चर्चा-विचारणात्मक वैज्ञानिक लेख आदिकी संकलना की है।) तथा इस ग्रंथ में जैन खगोल-भूगोळ के बारे में । जैन शास्त्रो क्या कहते हैं इसकी सुंदर, प्रिय एवं महत्वपूर्ण समज : अनुवादक: पूज्यपाद समर्थवक्ताआचार्य महाराज १००८ श्रीमद् विजय मोहनसूरीश्वरजी महाराजके पधरपू. आचार्य श्री विजय प्रतापसूरीश्वरजी महाराजके शिष्यरत्न पं. श्री धर्मविजयजी गणि शिष्य मुनिश्री यशोविजयजी (वर्तमानमें आचार्य श्री यशोदेवसूरिजी). आवृत्ति-चौथी वि.सं.२०१६ किं.रु.२०१-०० इ.सन्२००३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005475
Book TitleSangrahaniratnam Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year2003
Total Pages1042
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy