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________________ Jain Education International ॥ २८ नक्षत्रोनी आकृति वगैरे विषयो संबंधी यंत्र ॥ १६६ नक्षत्रनां नाम आकृति नक्षत्रना आरम्भसिद्धि । 'रलमालाना' आधारे | नक्षत्र टीकाना आधारे | आधारे नक्षत्रोनी जन्माक्षरो | संख्या नक्षत्रोनी आकृति आकृतिनां नामो जु जे जो खा ३ शृङ्गाटकवत् गोशीर्षावळी 'अभिजित् २ श्रवण खी खू खे खो ३ त्रयपादवत् कासार धनिष्ठा गा गी गू गे | ५ मृदङगाकारवत् पक्षिपञ्जर For Personal & Private Use Only संग्रहणीरल.(बृहत्संग्रहणी) गुजराती अनुवादसह . . ४ शतभिषक् . १-व्यवहारमा अभिजित् सिवाय २७ नक्षत्रानुसारे सर्व व्यवहार प्रवर्ते छे; कारण के अभिजित् नक्षत्रनो चन्द्रमा साथेनो सहयोग स्वल्पकालीन होवाथी तेनी विवक्षा नथी, तो पण नक्षत्रो तो २८ ज छे अने अठ्ठावीशने आधारे लेवामां आवेल गणत्री श्री आरंभसिद्धि-श्री नारचन्द्रादि जैन ज्योतिष ग्रंथोमां प्रसिद्ध छे. . गो सा सी सू १०० वर्तुलाकारवत् पुष्पोपचार ......... ......... ....... ....... . . :..... ....... ....... ...... . o/ ५ पूर्वाभाद्रपद से सो दा दी २ द्वियुगलवत् वाप्यर्द्ध ६ उत्तराभाद्रपद दू ज झ था २ पर्यङ्कवत् अर्धवापी ७ रेवती दे दो चा ची ३२ मुरजवत्नौकासंस्थान www.jainelibrary.org
SR No.005475
Book TitleSangrahaniratnam Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year2003
Total Pages1042
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size34 MB
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