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तेह ज्ञान मुज शुरु रे ॥नम् ॥ सि ॥३५॥
॥ ढाल ॥ ॥ ज्ञानावर्णी जे कर्म , क्षयउपशम तस थाय रे ॥ तो हुए एहिज श्रातमा, ज्ञानबोधता जाय रे ॥ वी० ॥ ॥ इति सप्तम सम्यग्ज्ञानपदपूजा समाप्ता ॥ ७ ॥ ॥ अथ अष्टम चारित्रपद
पूजा प्रारंनः॥ ॥ काव्यं ॥ इंजवज्रावृत्तम् ॥ आरादिअखंडीअस किस्सा
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