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नीए शिवसुख चाख्यु रे ॥०॥ सि० ॥३५॥ सकल क्रियानुं मूल जे श्रझा, तेहनुं मूल जे कहीए ॥ तेह झान नित नित वंदीजे, ते विण कहो केम रहीए रे ॥ ज० ॥ सि ॥ ३३ ॥ पंच ज्ञान मांहि जेद सदागम, स्वपर प्रकाशक जेह ॥ दीपक परे त्रिजुवन उपकारी, वली जेम रवि शशि मेह रे ॥न० ॥ सि० ॥ ३४ ॥ लोक ऊर्ध्व अधो तिर्यग्ज्योतिष, वैमानिक ने सिझ॥ लोकालोक प्रगट सवि जेहथी,
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