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प्रभ
॥ श्रथ खूणउतारण गाथा ॥
॥ उवहि पडिजग्ग पसरं, पयाहिणं मुणिव करे ऊणं ॥ पम सलूण त्तणलाडियं च खूणं हु अवहंमी॥१॥ दोहा पिरकेविणु मुह जिणवरह,दीहर नयण सखूण॥ न्हावर गुरु महर नरिय, जलणी पश्स्सइ, खूण ॥२॥ खूणउतारिह जिणवरह, तिन्नि पयाहिण देउ ॥ तमयड सद्द करंति यह,विजा वित जलेण ॥३॥ गाथा ॥ जं जेण विज विजार, जलेण तं तह निहलह स
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