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॥ २ ॥ किन्नर अरु गंधर्व महोरग, निरत नीर नित्य सारे ॥ श्री जिन पर० ॥ ३ ॥ देवकुंडुनि धुनि गर्जत यति, शिर पर सुजस विधारे ॥ श्री जिन पर० ॥ ४ ॥ परमानंद जिनराज जगतपद, जगजीवन हितकारे ॥ श्रीजिन पर० ॥ ५ ॥ इति कलश ढालवा समयनुं स्तवन ॥
॥ पबी रकेबीमां लूप पाणी लइने आरतिनी परे करवुं ने ते वखते मुख की गाथा कहेवी, ते यावी रीतेः
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