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________________ कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य इस संदर्भ में लिखते हैं कि रात्रि भोजन करते हुए या पकाते हुए सूक्ष्म अथवा स्थूल जीवों के उसमे गिरने की निश्चित संभावना है। उसकी विविध हानियाँ प्रत्यक्ष अनुभव में आती है I LATRIN Jain Educationa International रात्रि भोजन के अनेक विध नुकशान गों मक्खों से उलटी चोटों से बुद्धि मंदता कास, फास, घोच्छु से ता सर्प विष से मृत्यु बाल से स्वर भग पकलों से भर ४७ राष्ठ जंतु से नरकगति जैसे कि १. भोजन में जूं आ जाए तो जलोदर रोग होता है । २. मक्खी गिरने से वमन होता है । ३. चींटी का भोजन में मिल जाना बुद्धि मंदता का कारण होता है । ४. मकड़ी कोढ़ का कारण है । ५. कांटा, लकड़ी का टुकड़ा अथवा मसाले वाले शाक में बिच्छु गिर जाने से तलवे घायल हो जाते है । ६. छिपकली का अवयव या लार गिर जाने से स्थिति गंभीर हो जाती है । ७. मच्छर से ज्वर हो जाता है । ८. सर्प का विष प्राणघातक सिद्ध होता है । ९. रुग्ण जन्तु कैंसर उत्पन्न करते हैं । १०. विषैला जन्तु या पदार्थ दस्त, वमन का निमित्त बन जाता है । ११. बाल (केश) स्वरभंग का हेतु है । १२. व्यक्ति परलोक की आयु का बंध कर उल्लू, काग, चिमगादड, बिल्ली आदि हिंसक पशु बनता है या नरक में 1 1 पोक में विशेष प For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005331
Book TitleRatribhojan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavin Shah
PublisherRupaben Astikumar Shah
Publication Year2013
Total Pages230
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size9 MB
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