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________________ શાસનસમ્રાટ્ જાટલેાકેાએ ઘણી ધમાલ કરી છતાં તેમની કારી ન ફાવવાથી છેવટે તેમણે જોધપુર દરબારી કોટ માં દાવા માંડ્યો. જૈને વિરુદ્ધ કેસ ચાલ્યા. જૈનો તરફથી જોધપુરના વિખ્યાત વકીલ શ્રીજાલમચંદ્રજી વિગેરે-કે જેએ પૂજયશ્રીના અનન્ય ભક્ત હતા, તેએ ઊભા રહ્યા. જાટલાકા પુરવાર ન કરી શક્યા કે-‘કાપરડાનું મંદિર એ જૈનેતર મ ંદિર હતું અને છે !” એટલે ન્યાયા ધીશે જજમેન્ટ આપતાં જણાવ્યુ` કે—આ (કાપરડાનુ) જૈનોનું જ મદિર છે, અને ચામુડા માતા તથા ભરવજી પણ જૈનોના જ દેવ છે, એમાં કાઇ સંદેહ નથી. અને તેથી હવે બીજા કાઈને પણ આ મંદિરમાં હસ્તક્ષેપ કરવાના અધિકાર નથી,’’ મહિમાના તથા ૧૨૦ આથી જાટલેાકેાનુ' જૂઠાણુ. જગજાહેર થયું. નવાષ્કૃત મહાતીના પૂજ્યશ્રીના અખંડ તપસ્તેજના પ્રભાવ સૌને પ્રત્યક્ષ જોવા મળ્યા. : ઊકેશગચ્છીય મુનિવર શ્રી જ્ઞાનસુંદરજી મ. લખે છે કેઃ हाय, "जीर्णोद्धारका कार्य प्रारम्भ हो गया था परंतु अधूरा काम होने से पहले का सब किया कराया जीर्णोद्धार भी सफाया होने लगा । टीपें इत्यादि टूटने लगी और यह जोर्ण मन्दिर गिरने की हालत में हो गया । उस समय कुदरत ने एक व्यक्ति के हृदयमें जीर्णोद्धार करने की भावना पुनः उत्पन्न की। यह व्यक्ति थी जैन शासन के उज्ज्वल सितारे तीर्थोद्धारक प्रबलप्रतापी जैनाचार्य श्री विजयने मिसूरीश्वरजी महाराज ! आपकी शुभ दृष्टि इस तीर्थकी ओर हुई । जब आपने स्वयं पधार कर इस मन्दिर को देखा तो आपके रोमांच खड़े हो गये । सहसा आपके अन्तःकरण से यह ध्वनि प्रस्फुटित हुईहमारे तीर्थोंकी आज यह दशा ! आपने मन ही मन दृढ़ संकल्प किया कि बिना इस तीर्थका जीर्णोद्धार कराये मैं गुजरात में प्रवेश नहीं करूँगा । दृढप्रतिज्ञ आचार्यश्रीजी अपने वचन पर तुले रहे। यों तो आपने और भी कई तीर्थों का जीर्णोद्धार करवाया था परंतु वहां तो सब साधनों आपको अनुकूल थे । द्रव्य सहायकों की भी पुष्कलता थी । जिससे उन तीर्थो का जीर्णोद्धार सानन्द समाप्त हुआ था, परन्तु यहां का वातावरण तो कुछ और ही था । जीर्णोद्धार के साधनों को यहाँ जुटाना जरा टेढी खीर थी । कार्यकर्ताओं की शिथिलता, द्रव्य का अभाव, जैनियोंकी बस्ती का उस ग्राममें कम होना आदि कई बाधाएं उपस्थित थीं । दशा यहाँ तक सोचनीय थी कि आपके ठहरने के लिये भी कोई स्थान नहीं था । यहाँ तक कि आपको कईबार तम्बू और साईवानमें ही रहने को स्थान मिला। यह मन्दिर जैनेतर जनता के हस्तगत होनेवाला था । आचार्यश्री की पक्की लगन को देखकर उनके जीमें यह विश्वास हो गया कि अब यहाँ का जीर्णोद्धार अवश्य हो के रहेगा | कापरडाजी को आसपासकी जैनेतर जनताने इनके विपक्ष में आन्दोलन करने के लिये अपना जोरदार संगठन किया । सिवाय आचार्यश्री की शक्तिके और किसकी सामर्थ्य थी कि उनके समक्ष ठहर सके । विपक्षियोंने अधिक विघ्न उपस्थित किये | वादानुवाद इतना बढ़ गया कि अन्त में इसका एक मुकदमा चला। जिनकी कार्यवाही जोधपुर की अदालत में होनी प्रारंभ हुई । जोधपुरके जैन वकोलोंने उस समय जी जान से सहायता दी। उपद्रवियों का इतना होंसला बढ़ गया कि यहाँ कुछ दिनों के लिये तथा शान्तिरक्षा के लिये पुलिस भी रखनी पड़ी। १. प्राचीन तीर्थ श्री कापरडाजी का सचित्र इतिहास पृष्ठ ५०,, - कर्ता - ज्ञानसुन्दरजी । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005301
Book TitleShasan Samrat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheelchandravijay
PublisherTapagacchiya Sheth Jindas Dharmdas Dharmik Trust
Publication Year1973
Total Pages478
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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