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________________ .-..-..-..-..-..-..-..-..-..-..-..-..-..-..-..-..-..-..-..-..-..-..-..- -: स्माता...............................वइराड वच्छ वरणा अच्छा तह मत्तियावइ दसण्णा । सोत्तियवइ य चेदी, वीयभयं सिंधुसोविरा ॥१११॥ महुरा य सूरसेणा पावा भंगी य मास परिवठ्ठा । सावत्थि य कुणाला, कोडीवरिसं च लाटा य ॥११२॥ सेयवियाविप णयरी, केकयअद्धं च आरियं भणियं । इत्थुप्पत्ति जिणाणं चक्कीणं रामकण्हाणं ।।११३। (विचारसार-४५ थी ५०) + (प्रज्ञापना सूत्र/प्रथम पद/सूत्र-३७) ___ + (सूयगडांग सूत्र / अध्ययन-५ / उद्देशो-१) + (गाथा सहस्त्री - १९१ से १९६) (२) से कि तं मिलिक्खु? मिलिक्खु अणेगविहा पन्नतं, तं जहा - सगा जवणा चिलाया सबर बब्बर मुरुंडोट्टभडगनिव्वगपक्कणिया कुलक्खगोंड सिहलपारसगोधा कोंचअंबडइदमिलचिल्ललपुलिंदहारोसदोवोक्काणगन्धा हारवा पहलियअज्झलरोमपासपउसा मलया य बंधुंया य सूयलिकोंकणगमेयपल्हवमालव मग्गर आभासिया कणवीर ल्हसिय खसा खासिय णेदूर मोंढ डोंबिल गलओ पओस कक्केय अक्खाग हणरोमग हुणरोमग भरु मरुय चिलाय वीयवासी य एवमाइ, सेत्तं मिलिक्खु ।। (प्रज्ञापना सूत्र/प्रथम पद/सूत्र-३६) (3) प्रपयन सारोद्धार iतात मनाशोना नामो : (१) २६ (२) यवन (3) २.७५२ (४) ५६२ (५) १५ (६) भ२७४ (७) २५ (८) २५॥ (3) () 455॥२॥ (१०) १२७।। (११) हुए। (१२) रोम (१3) पारस (१४) ५स (१५) पासि5 (१६) इनिस (१७) ८१.१२. (१.८) बोस (१८) भिल्ल (२०) भान्, (आ) (२१) पुटिह (२२) य (२३) भ्रम२२२ (२४) ओपी (२५) यंयु (२६) मालव (२७) द्रविड (२८) हुदाई (२८) ४५ (30)रात. (3१) यमुप (३२) ५२९५ (33) ४९५ (३४) तुरंभु५ (३५) भि९९५ (36) य[ (3७) २४४९ इत्याहि. (प्रवचनसारोद्धार-गाथा-१,५८३/८४/८५) (૪) મહાભારતના ઉપાયન પર્વ અંતર્ગત અનાર્ય દેશોનાં નામ: (१) २७ (२) यवन (3) २ (४) आन्ध्र (५) 05 (6) पुलिन्द (७) मोला। (८) ४ () साभार (१०) ५८३१ (११) ४२६ (१२) 55 (१3) ५स. (१४) ३७५ (१५) त्रिगत (१६) शिम (१७) (भद्र (१८) सायन (१८) सबष्ट (२०) ताक्ष्य (२१) प्रड (२२) वसति (23) भौलिय (२४) क्षुद्र भास (२५) शौ3 (२६) Y९७ (२७) पत्य (२८) यव्य (२८) द्राव (30) शुर (3१) वैयम (३२) ७६७१२ (33) 41.5 (3४) भान (34) पौ२७... त्याहि. (महाभारत / उपायन पर्व) us अनार्यक्षेत्रं धर्मसंज्ञारहितमनेकधा, तदुक्तम्सक जवण सबर बब्बर कायमुरुंडो दुगोणपक्कणया। अक्खागहुणरोमस पारसखसखासिया चेव ।। दुविलयलवोस बोक्कस भिल्लंद पुलिंद कोंच भमर रुया। कोंबोय चीण चंचुय मालय दमिला कुलक्खा य॥ —399) 399 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005233
Book TitleJain Cosmology Sarvagna Kathit Vishva Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitraratnavijay
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2012
Total Pages530
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size28 MB
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