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________________ જૈન શ્રમણ સદીના સમયજ્ઞ સંતો સર્વસંસારના ત્યાગસહિત ઉગ્ર સંયમચર્ચાઓના પાલન દ્વારા કાયા સુધીનાં તમામ પાત્રો પરની મમતા ઓગાળ્યા પછી પણ અહંની મમતા ઓગાળવાનું કાર્ય અતિ દુષ્કર છે. માન-મોભો અને પદ-પ્રતિષ્ઠાથી પર બનીને નિસ્પૃહપણે આત્મસાધનામાં રત રહેનારા ભદ્રપરિણામી સરળતા અને સૌમ્યતાથી શોભતા સંતજનો વિશેષ માનનીય અને પૂજનીય છે. ઊંડા ગ્રામ્યવિસ્તારોમાં કે રાજસ્થાન આદિ દૂરના પ્રદેશોમાં અનેક પ્રતિકૂળતાઓ વચ્ચે નિર્મળ અને સુવિશુદ્ધ સંયમયાત્રાના પાલન સાથે આંતરખોંજમાં ગરકાવ બનેલા આ મહાત્માઓ આતમમસ્તીમાં મહાલતા હોય છે. માન અને અપમાનના ભેદોને ભૂંસી નાખી ઊંચી આધ્યાત્મિક સ્થિતિને પામેલા આવા પુણ્યપ્રભાવી મહાત્માઓ આજના આ વિષમકાળમાં પણ જૈન સંઘના પરમ વૈભવસમા શોભી રહ્યા છે. गच्छाधिपति आचार्य दर्शन सागर सूरीश्वरजी महाराज साहेब निरंजन परिहार त्याग, तपस्या, सेवा, स्नेह, सम्मान और इन सबके साथ धन के प्रति गहन आस्था और विराट किस्म की विद्वत्ता की वास्तविक प्रतिमूर्ति के रूप में आचार्य दर्शन सागर सूरीश्वर महाराज को जाना जाता है। जैन धर्म के श्रेष्ठ आचार्यो और 100 अपने समकालीन गच्छाधिपतियों में सर्वश्रेष्ठ माने जाने वाले आचार्य दर्शन सागर सूरीश्वर महाराज जीते जी धर्म, आस्था और सात्विक जीवन की शालीन प्रतिमा का रूप जीते जी ही धर चुके छे । ७५ वर्ष तक साधु जीवन को जीने वाले आचार्य दर्शन सागर सूरीश्वर महाराज अपने जीवनकाल में अगर गच्छाधिपतियों ते सर्वांगीण अग्रणी आचार्य माने जाते रहे तो इसका कारण यही थी कि जैन धर्म के ९०० से अधिक साधु-साध्वीयों की विराट सेना के सेनापति के रूप में उन्होंने देशभर में धर्म का प्रचार और प्रसार किया। विक्रम संवत १९५८ में जेठ वद ७ को गुजरात के ध्रांगध्रा जिले के धोली गांव में जन्मे Jain Education International પૂ आचार्य दर्शन सागर सूरिश्वर महाराज २७ वर्ष की उम्र में सांसारिक सुखों का त्याग करके संयम जीवन की तरफ अग्रसर हुए। तब से लेकर ९१ वर्ष की उम्र तक देशभर में भ्रमण के दौरान करीब २०० से ज्यादा मंदिर की स्थापना और प्रतिष्ठा का इतिहास उनके खाते में दर्ज है। उनकी दिव्य उपस्थिति और पावन प्रेरणा के दौरान ही इस विरल योगी के नेतृत्व में मुंबई में पंद्रह मंदिकों की स्थापना हुई । श्रीमती हरखबेन की कोख से पितांबरदास के घर जन्मे बालक देवचंद में शुरु से ही सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह और जीवन में शुचिता केलक्षण स्पष्ट दिखे और इसी की परिणीति विक्रम संवत १९८६ में जेठ सुद १४ को गुजरात के खंभात में हुई जहाँ बालक देवचंद को भूज्य श्री सागरजी महाराज ने दीक्षा देकर महोदय सागर महाराज के शिष्य के रूप में प्रस्थापित किया । आचार्य दर्शन सागर सूरिश्वर महाराज ने साधु जीवन के दौरान अपनी धार्मिक क्रियाओं और धर्म के प्रति गहन आस्था को इस तरह विकसित किया कि उनके सांसारिक परिवार के ही कुल २५ सदस्यों ने साधु जीवन की तरफ कदम बढ़ाए और दर्शन सागर सूरिश्वर महाराज के धार्मिक आंदोलन को और प्रबलता प्रदान की। जैन धर्म के जितने भी बड़े संत या आचार्य हुए हैं उनमें दर्शन सागर सूरिश्वर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005142
Book TitleVishwa Ajayabi Jain Shraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year2010
Total Pages720
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size35 MB
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