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________________ યક્ષરાજશ્રી માણિભદ્રદેવ 541 दीप पूजा दोहा करुं दीपकसुं पूजना, आतम जग प्रकाश ॥ मनोकामना फलवती, संपत्ति घर निवास ॥१॥ ढाल पांचमी राग-मत वावो मारा परण्या जीरो । यह अवसर कैसो आयो चित्त भ्रमित मुनि बनायोजी । भैरव उत्पात मचायो ॥ हेमविमलसूरि आराधन से, संकट सभी मिटायोजी । शासनरी शान बढाई ॥ (२) त्याग-तपस्या-मंत्र प्रभावे, वीर माणिभद्र आयाजी । निज आतमरा पर भावे ॥ (३) आधि व्याधि ने रोग निवारी. शासन विरुद धरायोजी । शुभ आनंद रंग वरसायो ॥ . वासक्षेप माणिभद्र नामसुं, कार्य सिद्ध उपजायोजी । इच्छित फल के दातारी ॥ माणिभद्र अभिषेक स्पर्शसु, बाधाये टल जावेजी । पृथ्वी पर तरल विहारी ॥ दर्शनसागर नित्योदयसुं, चन्द्रानन पद पायोजी । आनंदघन आप वरसायो । मंत्र ॐ ह्रीं श्रीं माणिभद्राय, सर्व विघ्न हराय, मंगलकराय सर्वव्याधि दुष्टारि हरणाय रिद्धि सिद्धिं कुरु दीपं दर्शयामि स्वाहा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005141
Book TitleYakshraj Shree Manibhadradev
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year1997
Total Pages860
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size39 MB
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