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અભિવાદન ગ્રંથ ]
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पन्यास प्र. श्री वीररत्नविजयजी मा.सा. (मालवरल एक परिचय : संदीप फाफरिया द्वारा)
मालवा को अपना कर्मक्षेत्र बनानेवाले महापुरुषों की श्रृंखला में एक प्रभावक नाम लगभग बीस वर्षोंसे जैन धर्म की शान बढ़ाने वाले जिन संत का नाम जन-जन के मुख में है । वे हैं मालवरत्न पन्यास प्रवर श्री वीररत्नविजयजी मा.सा. । वीरभूमि, रत्नगर्भा राजस्थान के पिंडवाडा (सिरोही) में श्री छोगालालजी मरडीया के घर माता लक्ष्मीबाई की कुक्षी से वि. स. २००८ फाल्गुन शुक्ल ३ को जन्में उत्तमचंद के बारे में किसे पता था की यह राजस्थान का बालक मालवरल बनेगा । माता-पिता और भाई बहनों का दुलारे उत्तमचंद ने मात्र ११ वर्ष की लघुवय में जैन दिक्षा अंगीकार की और मुनी वीररत्नविजयजी बन गये । वि. स. २०२० की माघ शुक्ल ११ को इन बाल मुनि की श्रमण यात्रा आरम्भ हुई।
प. पू. आचार्य श्री विजयभुवनभानुसूरिजी आचार्यश्री प्रेमसूरिजी, आचार्यश्री जितेन्द्रसूरिजी एवं आचार्यश्री गुणरत्नसूरिजी मा. सा. जैसे महान गुरुजी की सदा बरसती दिव्य कृपा और शुभाशीष ने मुनि श्री के व्यक्तित्व को निखारा और विकास यात्रा में बढ़ते गये।
ज्ञान-ध्यान और संयम साधना के शिखर की और बढ़ते हुए, आपने मालवा को अपना कर्म क्षेत्र बनाया, प्रथम व्याख्यान देने का सुअवसर पूज्य गुरुदेवश्री जितेन्द्रविजयजी मा. सा. (वर्तमान आचार्यश्री जितेन्द्रसूरिजी) के सानिध्य में इन्दौर शांतिनगर में प्राप्त हुआ।
गांव-गांव में जिन मंदिर निर्माण, उपाश्रय निर्माण का लक्ष्य साध कर लगभग ६०-७० जिनमंदिर निर्माण, जिर्णोद्धार करवाएं। साथ अनेक तीर्थ स्थानों का नूतन निर्माण भी करवाया ।
साधना के क्षेत्र में ध्यान को उत्तम मानते हुए वाग्वादीनी मां सरस्वती एवं ऋषि मण्डल की उत्कृष्ट साधना कर दिव्य कृपा प्राप्त की। शासन अधिष्ठायक श्री माणिभद्र वीर की २५ वर्षों से लगातार दिव्य कृपा पूज्य श्री पर है । संकल्प यदि सदढ़ हो तो सिद्धि के दर्शन अवश्य प्राप्त होते है । पूज्यश्री भी अपने हृदय में एक दिव्य साधना केन्द्र की स्थापना की भावना लिए विहार कर रहे थे । तभी ध्यान संकेत चमत्कार भूमिदान का अद्भुत संयोग हुआ और आपने शिवपुर महातीर्थ निर्माण का भूमि पूजन चैत्र शुक्ल ६ वि. स. २०४५ को करवाया । पूज्यश्रीकी साधना रंग लाई और वैशाख शुक्ल ६ वि. सं. २०४७ रविपुष्य योग में तीन आम्र वर्षों के मध्य शासन देव श्री मणिभद्रवीर का स्वयंभू प्रगटीकरण हुआ। आज शिवपुर तीर्थ मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र का जाना माना तीर्थ है । हजारों तीर्थयात्री प्रतिवर्ष यहां पर आते हैं। माणिभद्र वीर मंदिर का कलात्मक निर्माण हो चुका है तथा पार्श्वनाथ भगवान के रथाकार मंदिर का निर्माण चल रहा है।
___ संपूर्ण मालवा क्षेत्र में धर्म प्रभावना का जोर देखते हुए मालवा क्षेत्र के श्री संघोंने पूज्यश्री को २३ मार्च १६६८ को मालव रल पद से शिवपुर तीर्थ की दिव्य भूमि पर सुशोभित किया ।
साधना, जिन धर्मप्रभावना के क्षेत्र में अपने सुयोग्य शिष्य के बढ़ते कदमों को देख प. पू. आचार्य श्रीमद् विजय भानुसूरिश्वरजी म.सा. शुभाशीर्वाद ने शुभाज्ञा प्रदान की और आपको शत्रुजय तीर्थ की पावन सिंह भूमि पर ६ दिसम्बर १६६० को गणीपद से व रायपुरनगर में ७ मई १६६२ को पन्यास पदसे समालंकृत किया गया ।
पूज्यश्री के पावन सान्निध्य में लगभग १८० से अधिक जिन भक्ति महोत्सव व १५ छ'री पालीत ॥ संघों का भव्यतम आयोजन किया जा चुका है। *
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