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શાશ્વત સૌરભ ભાગ-૧
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इसी की परिणीति विक्रम संवत १९८६ में जेठ सुद १४ पालीताणा में संवत २००८ की कार्तिक वद ३ को गणि को गुजरात के खंभात में हुई जहाँ बालक देवचंद को पदवी और इसी पर्वतराज शत्रुजय की गोद में बसे तीर्थ पूज्य श्री सागरजी महाराज ने दीक्षा देकर महोदय सागर पालीताणा में संवत २०२२ की माघ सुद ११ को महाराज के शिष्य के रूप में प्रस्थापित किया। आचार्य उपाध्याय पदवी से विभूषित हए। संवत २०३५ की माघ दर्शन सागर सूरिश्वर महाराज ने साधु जीवन के दौरान सुद ५ को मुंबई के पायधुनी स्थित गोडीजी तीर्थ में उन्हें अपनी धार्मिक क्रियाओं और धर्म के प्रति गहन आस्था आचार्य पदवी और संवत २०४७ में फाल्गुन वद ३ को को इस तरह विकसित किया कि उनके सांसारिक परिवार मुंबई के प्रारना समाज में गच्छाधिपति के पद से नवाजे के ही कुल २५ सदस्यों ने साधु जीवन की तरफ कदम गए इस महान तपस्वी संत ने बारह वर्षों तक ९०० संतों बढ़ाए और दर्शन सागर सूरिश्वर महाराज के धार्मिक के समुदाय के गच्छाधिपति के रूप में देश और दुनिया आंदोलन को और प्रबलता प्रदान की। जैन धर्म के जितने को धर्म, सत्य और अहिंसा की राह दिखाने के साथ ही भी बड़े संत या आचार्य हए हैं उनमें दर्शन सागर सरिश्वर आचार्य दर्शन सागर सूरिश्वर महाराज संवत २०५९ में महाराज जैसे और संत बहुत कम हए हैं जिनके परिवार
भादरवा वद ३ के चार सितंबर १९९३ को शनिवार के के इतने सदस्यों ने साध जीवन स्वीकारा हो। यह उनकी दिन मुंबई में जब आखिर सांस लीतो उनकी जबां पर तपस्याओंका ही परिणाम था कि उनके परिवार के लोग
नवकार मंत्र का जाप था और कानों में आचार्य चंद्रानन ही नहीं अन्य लोग भी उनकी तरफ खिंचे चले आए और सागर सूरीश्वर महाराज के लोगस्स की गंज थी। उनका समुदाय ९०० से भी ज्यादा सदस्यों के आंकडे को अफने अनुयायियों में दादा गुरुदेव के नाम से पार कर गया।
विख्यात आचार्य दर्शन सागर सूरिश्वर महाराज के आचार्य दर्शन सागर सूरिश्वर महाराज की चातुर्मास
जीवनकाल में जितने विशाल आयोजन हुए उनके तपस्याओं के दौरान धार्मिक आयोजनों का बड़ा
मुकाबले कई गुना ज्यादा विराट उनकी अंतिम यात्रा रही।
मुंबई में अब तक किसी भी व्यक्ति की अंतिम यात्रा में सिलसिला शुरू होना बहुत आम बात थी। यही कारम
इतने लोग इससे पहले और इसके बाद शामिल नहीं हुए रहा कि राजस्थान में सर्वाधिक १९ चातुर्मास तपस्याओं के दौरान लाखों लोगों ने धर्म परायण जीवन को जिया
जितने आचार्यदर्शन सागर सूरिश्वर महाराज की अंतिम
यात्रा में। सड़के लाल और आकाश में गुलाल, सभी और खुद को सर्वकल्याण के लिए समर्पित किया। राजस्थान की १९ चातुर्मास के अलावा मध्य प्रदेश में
भक्तों के चेहरे लाल यह नजारा था इस महान तपस्वी
की अंतिम विदायी का। जो लोग जीते जी कथा, १६, महाराष्ट्र में १५, गुजरात में १० और एक-एक चातुर्मास पचिम बंगाल, बिहार एवं उत्तर प्रदेश में करके
कहावतों और किस्सों में शामिल हो जाते हैं, आचार्य देशभर के लोगों को सत्य की राह दिखाई और अहिंसा
दर्शन सागर सूरिश्वर महाराज भी उन्हीं में से एक थे। ऐसे
दिव्य संत को हम सबका शत् शत् नमन। का मार्ग मजबूत करने की प्रेरणा दी। धर्म प्रसाद के प्रति जबरदस्त समर्पण और सत्य की संवेदना को ही जीवन
सौजन्य : श्री सिवान्दी जैन संघ खिवान्दी (राजस्थान) का धर्म मानने के साथ-साथ अपने पास आए हर साधु-साध्वीमानां अध्यनना हमायती सांसारिक व्यक्ति में धार्मिक, सात्विक और सत्य की . पू.मा. श्री विश्यविज्ञानसूरि म. चेतना जागृत करने के फलस्वरूप ही आचार्य दर्शन सागर
ગુજરાતના અતિખ્યાત પાટનગર પાટણ નગરમાં सरिश्वर महाराज संवत १९८६ दीआ के बाद पवित्र तीर्थ संघवी अभूतनाबमा अने पारसपानना सं.
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