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श्री ज्ञानगच्छाधिपति संप्रदाय के संघनायक ज्ञान गच्छाधिपति तपस्वीराज श्री चंपालालजी म.सा.
आज के इस भौतिकवाद के युग में जिनवाणी का झरना हम सभी तक पहुंचानेवाले भगवान महावीर के उपदेशों की त्याग वैराग्य से सरोवार झड़िया लगानेवाले | तप, त्याग की महान मूर्ति कहलानेवाले संघनायक तपस्वीराज ज्ञान गच्छाधिपति श्री चंपालालजी म.सा. का जन्म राजस्थान प्रान्त ते अजमेर जिले के मसूदा शहर में फाल्गुन सुदि 1 वि.सं. 1970 को छाजेड ओसवाल जैन | कुल में पिताश्री किशनलालजी छाजेड एवं धर्मपरायण माता श्री पानीबाई की रत्नकुक्षी से हुआ। द्वितीया के चन्द्रमा की तरह आप वृद्धि को प्राप्त होने लगे। ज्योंहि यौवनावस्था को प्राप्त हुए कि पिताजी ने आपका संबंध एक सुशील कन्या से कर दिया परंतु आपको तो संसार के प्रपंचों में पड़ना ही नहीं था इस महापुरुष ने सांसारिक संबंध को ठुकराकर सचे वीतराग धर्म के प्रति अपना संबंध जोड़कर संयम को | धारण करने का दृढ़ निश्चय कर लिया और पूज्य रत्नचंद्रजी म.सा. एवं पूज्य श्री समर्थमलजी म.सा. के चरणों में पहूंच गये। सम्यक् प्रकार से मुनिचर्या की जानकारी प्राप्त कर अल्प समयमें आगमानुसार ज्ञान अर्जित कर सिंह के समान संयम लेकर उत्कृष्ट भावना से खींचन ( राजस्थान) में फाल्गुन यदि 2 वि.सं. 1991 को 21 वर्ष की भर यौवनावस्था में भागवती दीक्षा अंगीकार की। आप तपस्या करने में प्रसिद्ध हैं। किसी को ज्ञात ही नही होने देते की आप तपस्या करते हैं विगत कई वर्षों से एकांतर तप की तपस्या करते आ रहे हैं। उपवास, बेला-तेला करना आपकी दिनचर्या बन गयी हैं। इस कारण सम्पूर्ण जैन | समाज में आप तपस्वीराज के नाम से ख्याति प्राप्त हैं । सिंह की तरह आप संयम में कठोर हैं, संयम जीवन में थोड़ी सी भी कमी आप आने नहीं देते। इतने बड़े संघनायक होने के पश्चात् भी आप में तनिक भी अभिमान-मान आदि दिखायी नहीं देता। अपने छोटे संतों के साथ एक ही पाट
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पर दिखायी देते हैं मानों आपो संघनायक नहीं, एक साधारण संत हों। आप चाहे शरीर काया से दुबले पतले हैं परंतु आप संयम में इतना कठोर रूख अपनाते है कि शायद ही सम्पूर्ण भारतमें अन्य किसी समुदाय में हो । आपके समुदाय में सभी आज्ञानुवर्ती संत सतियाँ भी शुद्ध संयम पालनकर्ता हैं । आगम शास्त्र का सभी को अच्छा ज्ञान है । दीक्षा आदि में कोई आडम्बर आदि दिखाई नहीं देता है। यही कारण हैं कि अन्य समुदायों की अनेक भव्य आत्माएं आपके समुदाय में आकर दीक्षा ग्रहण करती हैं। आपकी वैराग्यवाणी का इतना गहरा असर होता है कि अनेक भव्य आत्माओं को वैराग्य भाव उत्पन्न हो जाता हैं। इस कारण आप श्रमण निर्माता भी कहलाते है। वर्तमान में जहाँ सर्वत्र चारों ओर आडंबर और शिथिलाचार का फैलाव दिखाई देता है वहाँ पर ज्ञानगच्छ आपकी निश्राय में आज भी भगवान की विशुद्ध परंपरा को अक्षुण्ण बनाए हुए है। 91 वर्ष की वयोवृद्ध अवस्था में भी आपकी वाणी में वही ओज, वही त्याग, वही जोश, एवं वैराग्य का स्त्रोत बहता रहता है। इसी तरह और भी अनेक अरबपति, इन्जिनियर्स, सी. ए. स्वाध्यायीओ आदिने आपकी निश्रा में दीक्षा ग्रहण की है आपके संघ में वर्तमान में लगभग 475 से भी अधिक साधु-साध्वीयाँ विद्यमान हैं। प्रायः कर सभी साधुसाध्वीयों को आगम का अच्छा ज्ञान भी हैं। आपका जब प्रवचन होता है तो उस समय प्रवचन में लगभग शतः प्रतिशत श्रोता सामायिक व्रत में बैठे हुए मिलेंगे। आप हमेशा विशेषकर नवयुवकों को धर्म की ओर प्रेरित करने का आह्वान करते रहते हैं। आपके प्रवचनों का श्रोताओ पर काफी प्रभाव पड़ता है।
आपकी निश्रा में अनेक समृद्ध दम्पतियों ने दीक्षा ग्रहण कर रखी है। उच्च संयम साधना के लिए आपका संघ सम्पूर्ण जैन समाज में सर्वोपरि विश्व प्रसिद्ध है।
सौजन्य : बायोकेम फार्मास्युटिकल्स इण्डस्ट्रीडा - मुंबई
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