SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ સ્વપ્ન શિલ્પીઓ प. पू. आचार्य श्री नित्योदय सागर सूरीश्वरजी महाराज निरंजन परिहार साधु-संत आम तौर पर समाज में धार्मिक चेतना और सत्कारियों के प्रति जागृति पैदा करने के कार्यों में ही लगे रहते हैं, साथ ही जीवन के शुद्धिकरण के लिए तपस्या के आयोजनों का नेतृत्व उनके हिस्से आता है । बहुत कम संत एसे हुए हैं तो इनसे हटकर होनवाले कार्योंमें अपना योगदान देते देखे गए हैं। जैनधर्म के आज के संतों में अगर देखा जाए तो आचार्य नित्योदय सागर सूरीश्वर महाराज एकमात्र संत हैं जो सामाजिक चेतना और संगठनप्रियता की वजह से सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। वे मानते हैं कि समाज जब तक पूरी तरह एक होकर धर्म प्रति जागृत नहीं होता तब तक समाज में कभी भी सामूहिक बदलाव नहीं आ सकता । अक्सर यह देखा गया है कि विभिन्न समुदायों और सामाजिक संगठनों में मतभेद की वजह से एक गहरी खाई पड़ जाती है, वहाँ आचार्य नित्योदय सागर सूरीश्वर महाराज की जरूरत महसूस की जाती रही है। अफनी वाणी के ओज र प्रबल इच्छाशक्ति के साथ-साथ प्रखर चेतना के बलबूते पर पूज्य गुरुदेव दर्शन सागर सूरिश्वर महाराज के प्रिय शिष्य आचार्य नित्योदय सागर सूरीश्वर महाराज ने सैंकड़ों संस्थाओं, कई गाँवों और अनेक परिवारों के वर्षों पुराने विवाद चुटकी में सुलसझाए हैं। यही कारण है बिखरते समाज को एक करने की दिशा में आचार्य नित्योदय सागर सूरीश्वर महाराज के प्रयासों को हर जगह काफी सराहना मिली है और यह उनकी धार्मिक चेतना एवं तपस्या की प्रबलताका ही परिणाम है कि अपनी बात पर अडिग रहने वाले लोग भी आचार्य के आते ही उनेक Jain Education Intemational ૧૧૫ सामने नतमस्तक होकर समाज के हितमें अपने कदम पीछे ले लेते हैं। गुजरात के सुरेन्द्र नगर के पास आदरियाणा में विक्रम संवत १९९८ में मगसर सुद २ कोशनिवार के दिन २१ नवंबर १९४९ को श्रीमती मरघाबेन और तलखीभाई के घर जन्मे मासूम नटवरलाल के किसी भी परिजन को यह कतई पता नहीं था कि सिर्फ १४ वर्ष की उम्र में ही इस बालक के कदम संन्यास लेक संसार का कल्याण करने की तरफ बढ़ेंगे। विक्रम संवत २०१२ में वैशाख वद १३ को २६ मई १९५६ का शनिवार बालक नटवरलाल के लिए सांसारिक सुखों के त्याग का दिन बनकर आया । इसी दिन गुजरात के चाणस्मा में दीक्षा लेकर बालक नटवरलाल नित्योदयसागर बने और आचार्य दर्शन सागर सूरीश्वर महाराज को गुरुदेव के रूप में स्वीकार करने के साथ ही प्रण लिया कि वे अपने पूरे साधु जीवन के दौरान समाज के लिए कुछ ऐसा खास किस्म का नय काम करेंगे जिससे समाज बिखरने के बजाए एक हो और सामाजिक विवाद के रास्ते नेक हो । आचार्य नित्योदय सागर तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान के हजारों परिवारों में एकता के बीज बोने और सैकडों संस्थाओं को समर्पण के सूत्र में पिरोने वाले संत के रूपमें जाने जाते हैं। संगठन उनका सबसे पृरिय विषय है और एकता का प्रयास उनकी पहली कोशिशष । जिनशासन की सेवा में इस तरह का एक अनोखा योगदान देनेवाले संत नित्योदय सागर के प्रयासों को प्रबलता प्रदान करने में उनके शिष्य आचार्य चंद्रानन सागर सूरीश्वर महाराज का भी जबरदस्त योगदान है। आचार्य नित्योदय सागर सूरीश्वर महाराज मानते हैं कि एकता ही जीवन की सफलताकी चाबी है जिसके जरिए दुनिया के सीसी भी मुश्किल काम को आसान किया जा सकता है। हालांकि यह भी मानते है कि सामाजिक जीवन में एकता इतनी आसान नहीं है लेकिन उनकी यह भी मानता है कि यह For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005122
Book TitleBahumukhi Pratibhaono Kirti Kalash Swapn Shilpio
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year2010
Total Pages820
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy