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________________ ઝળહળતાં નક્ષત્રો 693 यात्रा, साधर्मिक भक्ति, सहायता, सहयोग, पीडित मानव 80 शिविर हुई है। हजारों वालको का नर-जीवन परिवर्तन समुदाय को सहयोग, विमारों का उपचार, शिविर, जीव-दया किया है। के कई प्रकार के कार्यों को आपने संपादित कर समाज में पूज्यश्री की निश्रा में रथयात्रा :नई चेतना की लहर उत्पन्न कर दी है। इतना ही नहीं आपके पूज्यश्रीने तीन साल से परमात्मा के रथ-यात्रा में संपर्क में आनेवाले कई भाई-बहनों ने जैन भागवती-दीक्षा लेते हुए अपना आत्मकल्याण का मार्ग अपनाया है। आपके निश्रा प्रदान की है। 8000 कि.मी. विहार यात्रा दरम्यान 300 मंदिरों में चौवीसी भगवान की प्रतिष्ठा, पंचतीर्थी भगवान, पिताजी एवं छोटे भाई ने भी दीक्षा ली, वहाँ आपके चाचा चांदी के 175 साल पुराणे नवपद भगवान, अष्ट मंगल की की लड़की एवं सबसे छोटे भाई की दो सालियों ने दीक्षा लेकर आपके परिवार का गौरव-गरिमा बढ़ाई है। जैन धर्म स्थापना की है। के प्रचार-प्रसार एवं जैन समाज की सेवा करने के लिए पूज्यश्रीकी साहित्य साधना :आपके उपदेशों से अब तक 15 से अधिक संस्थाओं का पूज्यश्री 17 साल से विशेष प्रकार की साहित्य साधना गठन हो चुका है और सभी संस्थायें वर्तमान में सेवारत है। की जिसमें पू. साधु-साध्वी के पढ़ने लायक पाँच भाषा में मुनि सर्वोदयसागरजी अपने जैन साधुओं के साथ जहाँ भी 135 कथा के ग्रंथों ने जैन संघ में अनमोल आकर्षण जमाया विचरण करते हैं तो जन समुदाय सत्संग प्राप्त करने के लिए है। 500 विविध पजन पुस्तकों-सामायिक स्वाध्याय ग्रंथो 150 उमड़ पड़ते है। चातुर्मास स्थल पर आपके साधुओं के प्रवचन -700 प्राचीन हस्तप्रतो का जिर्णोद्धार - पाण्डुलिपी सीडी सुनने के लिए जन-समुदाय की अपार भीड़ उमड़ पडती है। तैयार हो रही है। ऐसे 2535 ग्रंथ श्री चारित्र रत्न चे. ट्रस्ट इतना ही नहीं चातुर्मास में त्याग और तपस्या के विभिन्न प्रकाशित करनेवाले है। पज्यश्री की निश्रा में 10 छ'रि पालित कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए भक्तों की भीड़ बनी रहती संघ निकले हैं। पूज्यश्री की निश्रा में 17 प्रतिष्ठाएँ हुई है। है। आपका जहाँ चातुर्मास होता है वहाँ के संघ एवं जैन पाँच पन्यात्माओं की दीक्षा और बड़ी दीक्षा हुई है। और 15 मंदिरों की अच्छी आय भी होती है। चातुर्मास के दौरान धर्म मण्डलों की स्थापना हुई है। अमरावती में 151 छाड़े का बंधुओ का विचार गोष्ठीयों, धर्मसभाओं का माहौल जमा । उजमणा, पारोला तीर्थ में 36 दिवसीय स्वामिवात्सल्य सहित रहता है। इस कारण अजैन आपका सत्संग अजैन प्राप्त महोत्सव हुए है। ऐसे सुंदर कार्यक्रम पूज्यश्री की निश्रा में करनेके लिए मचल उठते हैं। अचलगच्छ श्वेताम्बर जैन संघ हए है। के मुनि सर्वोदयसागर की धार्मिक आराधना, उपासना, भक्ति इस साल पूज्यश्री वाड़मेर चातुर्मास में विराजमान है। सेवा के साथ-साथ समाज एवं मानव सेवा से प्रभावित एवं 108 दिन नवकार लब्धी कलशयात्रा, 108 दिन श्री पार्श्वनाथ . प्रेरित होकर मेवाड़-क्षेत्र के लोगों में हर्षोल्लास-उत्साह एवं महापूजन, रात्रिभावना आदि सुंदर शासनप्रभावना हो रही है। उमंग के साथ आपको मेवाड दिवाकर अलंकार से अलंकृत किया। ऐसे साहित्यप्रेमी, साहित्य सर्जनकर्ता, साहित्य | उरयो भवतु सर्वेषाम् ।। संशोधक, साहित्य रचनाकार, आज त्यागी तपस्वी संत महात्माओं की पंक्तिमें अग्रीम अपना नाम बनाए हुए है। जैन धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार करते है। मानव-सेवा में समर्पित भावसे जुटे हुए है। जिस पर सभी धर्म-प्रेमीओं का गौरव होना स्वाभाविक है। पूज्यश्री की निश्रा में हुए कार्य पूज्यश्री की निश्रा में ज्ञान सत्र :-परम पूज्य दादा श्री कल्याणसागरसूरि ज्ञानसत्र 45 एवं पू. आचार्य श्री गुणसागरसूरि ज्ञान संस्कार शिबिर 351 आज तक बच्चों के Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005121
Book TitleJinshasan na Zalhlta Nakshatro Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year2011
Total Pages620
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size37 MB
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