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________________ ૯૭૨ જિન શાસનનાં मेवाड दिवाकर पर आपका नाम मुनि श्री सर्वोदयसागरजी रखा गया। मुनि पू. मुनि श्री सर्वोदयसागरजी म.सा. सर्वोदयसागर ने अपने गुरु आचार्य गुणसागरसूरीश्वरजी के साथ विचरण करते एवं लगातार वि.सं. 2033 से 2038 तक सर्वधर्म समभाव की। चातुर्मास में रहते हुए जैन धर्म ग्रंथोंका अध्ययन प्राप्त किया, भावना लिए श्वेताम्बर मूर्तिपूजक इतना ही नहीं गुरु की आज्ञा से श्री चातुर्मास स्थलों पर संघ के अचलगच्छ समुदाय के जैन बालक को धार्मिक ज्ञान-शिविर लगाकर धार्मिक शिक्षा मुान सवादयसागर म.सा. पढाने के साथ-साथ धार्मिक उपदेश देना भी आरंभ किया। देशभर में पद विहार करते हुए गुरुवर आचार्य गुणसागरसूरीश्वरजी के साथ कई धार्मिक मानव कल्याण के साथ-साथ आयोजनो, उत्सवो, महोत्सवो, प्रतिष्ठाओ आदि में सक्रिय मानवीय सेवा सम्बन्धी उपदेशों बनते हुए मुनि सर्वोदयसागर ने ज्ञान-गरिमा बढ़ानी शुरू कर के कारण जन-जन में लोकप्रिय दी। गुरु द्वारा जैन-धर्म प्रचार-प्रसार एवं अन्य धार्मिक क्रियाबने हुए है। सभी धर्मों के लोग कलाओं में योग्य समझने पर आपको स्वतंत्र रूपसे धर्म जो आपके सत्संग में आते हैं वे आपको बड़े ही गर्व एवम् प्रचार-प्रसार एवं मानव कल्याण कार्यों के लिए विचरण गौरव के साथ जैन मुनि कि अपेक्षा जन मुनि से सम्बोधित साथ जन मुान कि अपक्षा जन मुनि स सम्बाधित करने एवं चातुर्मास करने की स्वीकृति प्रदान की। अचलगच्छ करते है। भगवान महावीर के अनुयायी होते हुए मुनिवर जैन के जैन मनि सर्वोदयसागर द्वारा वि.सं. 2033 में दीक्षा लेने धर्म के उपदेशा के साथ अपना धामक सभाआ, प्रवचना, के बाद वि.स. 2066 34 चातुर्मास में: 23 महाराष्ट्र, 4 व्याख्यानों, संगोष्ठियों आदि में सभी धर्मों की सुंदर व्याख्या चातुर्मास गुजरात में, 3 कच्छ में, 2 राजस्थान में एवं 1करते हुए उनको आदर मान-सन्मान देते हुए ! जन-जन को 1 चातुर्मास बिहार और मध्यप्रदेश में करते हुए जैन धर्म की सम्बोधित करते है। इस कारण जैन धर्मावलम्बीयों के अलख जगा दी और अन्य धर्मों से समन्वय बनाकर धार्मिक अतिरिक्त अजैन धर्मावलम्बी भी आपके सत्संग में वड़चढ़ क्षेत्र में अपना अनोखा स्थान बनाते द्वारा लोकप्रिय साध बन कर भाग लेते है और अपनी हिस्सेदारी निभाना अहोभाग्य गये। चातुर्मास के दौरान आपके प्रवचनों से प्रभावित होकर समझते है। जन समुदाय त्याग और तपश्चर्या में तल्लीन रहने लगा। कई मानव-धर्म की अलख जाननेवाले ऐसे महामनिष मुनि प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान कर जनजागृति के माध्यम से जन सर्वोदयसागरजी का जन्म गुजरात प्रदेश के कच्छ जिले के कल्याणकारी करते रहे। बच्चों में धार्मिक शिक्षा का बढ़ावा मांडवी क्षेत्र के मेराउ में साधारण जैन समाज परिवार में आपका पहला प्रयास रहता रहा है। जिसके कारण बच्चों में वि.सं. 2015 की आषाढ़ वदि 5 को हुआ। माता श्रीमती नैतिकता एवं चारित्र निर्माण कर बीजारोपण होने लगा। मुनि साकरबाई और पिताश्री दामजीभाई की धार्मिक वृत्ति, समाज सर्वोदयसागर साहित्य-संशोधनमें लगे रहे है। जैन मुनि बनने सेवा आदि कार्यप्रणाली का बालक सुरेश पर भी गहरा प्रभाव के साथ निरंतर बढ़ते रहे। इस कारण अब तक आपने 2 पड़ा! सुरेश बचपन से विद्या अध्ययन के साथ धार्मिक हजार से अधिक धार्मिक पुस्तकों का संपादन किया। वहीं गतिविधियों में अधिक रुचि रखते थे। इस कारण माता-पिता हजारों ग्रंथों में संशोधन किया और कई ग्रंथों को भविष्य उन्हें उच्च शिक्षा दिलाने को सदा ही उत्सुक रहते थे और के लिए सुरक्षित रखने के अनुमोदनीय कार्य किया। आपकी बचपन में श्री आर्यरक्षित जैन तत्त्वज्ञान विद्यापीठ में भेजा। प्रेरणा से ही साहित्य प्रकाशन आदि के लिए 'श्री चारित्र परंतु सुरेश को सात वर्ष की अवस्था में अचलगच्छाधिपति रत्न फाउन्डेशन चेरिटेबल ट्रस्ट'' की स्थापना की गई है। आचार्य गुणसागरसूरीश्वरजी के संपर्क में आने पर इन पर साहित्य के साथ आपकी ज्योतिषी विद्या में अधिक रुचि एवं जैन साधुत्व का रंग चढ़ गया और आखिर वि.सं. 2033 जानकारी होने का लाभ हजारों-हजारों लोगों ने प्राप्त किया अक्षय तृतीया पर कच्छ के मकड़ा में जैन भागवती दीक्षा है और निरंतर प्राप्त करते रहे हैं। जैन धार्मिक प्रतिष्ठित पद अंगीकार कर आप आचार्य गुणसागरसूरीश्वरजी के हाथों से यात्रा, छ'रि पालित संघ, मंदिरों में मंदिर उपकरण वितरण दीक्षित बने और जैन धर्म पद्धति अनुसार जैन दीक्षा लेने करना, स्वामीवात्सल्य, प्रभावना, नवकार, मांगलिक, कलश Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005121
Book TitleJinshasan na Zalhlta Nakshatro Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year2011
Total Pages620
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size37 MB
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