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________________ ઝળહળતાં નક્ષત્રો. वर्ष की है। उन्होंने 66 वर्ष की उम्र में एकासना करने का प्रारंभ किया था, आज भी वे नित्य एकाशना करते है। वे एकासना के साथ ही साथ 94 वर्ष की उम्र में भी जिनपूजा, सामायिक, प्रतिक्रमण, जिनवाणी श्रवण, जाप-ध्यान आदि आराधना अप्रमत्त भाव से कर रहे हैं और मानव जन्म को सफल कर रहे हैं। अभी इनका यह 40 साल तक का हुआ (2067 पोष). प्रातः स्मरणीय जैनाचार्य श्री विजय प्रेमभुवनभानुजयघोष सूरीश्वरजी म. के आज्ञानुकारी विद्वान पूज्य पंन्यास श्री मुक्तिवल्लभ विजयजी गणी म. की पावन निश्रा में अहमदाबाद (गुज.) के श्री आंबावाड़ी जैन संघ में भव्य उपधान तप की आराधना हुई, जिसमें 550 आराधक थे। इनमें से 150 जितने आराधक 15 वर्ष से कम उम्र के स्कूल में पढ़ाई करते किशोर थे। इनमें से छोटा बालक 5 वर्ष का था जो अभी। के.जी.में पढ़ रहा है, ने 47 दिन का प्रथम उपधान सानंद सोल्लासपूर्ण किया। जिसमें 18 उपवास, 18 निवि (एकासना) तथा 10 आयंविल करने होते हैं। 5 वर्ष का बालक इतना महान तप करें, नित्य 100 खमासमणा देवें और 100 लोगस्स का काउस्सग्ग करे यह अति आनंदमय आश्चर्य है। अत्यधिक धन्यवाद उस बालक के माता-पिता को है, जिन्होंने अपने छोटे बालक को इतना बड़ा तप करने की अनुमति प्रदान की। जैन शासन के उदारदिल दानेश्वरी सुश्रावक श्री दीपचंद भाई "गार्डी" अपनी उम्र में प्रतिदिन 10 हजार का दान देते थे, फिर कुछ वर्ष बाद वे प्रतिदिन 1 लाख रूपये का दान देने लगे। फिर कुछ वर्ष बाद आमदानी बढ़ने पर प्रतिदिन 10 लाख रूपयों का दान देना प्रारंभ किया। आज वे अपनी आमदानी के 40 प्रतिशत यानी प्रतिदिन। करोड़ रूपयों का दान करते हैं। आज उनकी उम्र 94 वर्ष की है। उनका बहुमान सम्मान करने के लिए मुंबई विरलामातुश्री होल में भव्य सभा का आयोजन हुआ था। तब श्री दीपचंदभाई गार्डी ने कहा था कि-मेरे बाद भी मेरी दो पीढ़ी तक प्रतिदिन रुपय 1 करोड़ का दान का प्रवाह देवगुरु धर्म की कृपा से चालू रहेगा। मेरी 31 ૬૪૧ यह भावना है कि मेरा जन्म फिर से जैन शासन में हों और मैं सतत जिनशासन की आज्ञानुसार दानधर्म करता रहूं। आपने अनेक उपाश्रय, पशुओं के लिये पिंजरापोल, अजैन गरीबों को अनुकंपा दान, धर्मशालाएं, अंधावेरा-गुंगा की शालाएं आदि का निर्माण करवाया है और ऐसी जैन-अजैन संस्थाओं में आप निरंतर दान करते रहते हैं। __सात-आठ वर्ष पहले कच्छ में भूकम्प हुआ जिसमें करीब 1700 से 1800 छोटे बच्चे निराधार हुए थे, उनको गोद लेकर आजीवन लालन-पालन, पढ़ाई आदि सभी जिम्मेदारी आपने लेकर मानवता का उच्च आदर्श प्रस्तुत किया। धन्नाशाह, जगडुशाह, पेथड़ शाह, भामाशा, वस्तुपाल-तेजपाल इत्यादि दानवीरों का नाम हमने सुने हैं, इसी कड़ी में इस युग के दानवीर श्री गार्डीजी को अपार धन्यवाद । ★ भक्ति योगाचार्य परम पूज्य आचार्य श्रीमद् विजय यशोविजयजी सूरीश्वरजी म.सा. का गत वर्ष संवत् 2063 का चातुर्मास श्री डीसा (बनासकांठागुजरात) में हुआ था, तब श्री डीसा जैन संघ ने चातुर्मास के 4 महिना अर्थात् 120 दिनों तक तीनों टाईम का साधर्मिक वात्सल्य भोजन का आयोजन बड़े उल्लास से किया था। सकल श्री संघ ने चार महिने तक प्रेम-स्नेह-भक्तिभाव से साथ में बैठकर स्वामी वात्सल्य किया। मुंबई के गोवालिया टेंक संघ, नव जीवन संघ, माटुंगा संघ, शान्ताक्रूज संघ, मलाड़ संघ, भायखला संघ, मरीनड्राइव संघ इत्यादि कुल 14 जितने बड़े-बड़े श्री जैनसंघ एक साथ में मिलकर प्रतिवर्ष करीब पांच करोड़ रुपये का उदारता से साधर्मिकों को दान करते हैं। आर्थिक रीत से कमजोर जैन साधर्मिकों के लिये मेडिकल, एज्युकेशन, अनाज, व्यापार में सहायता इत्यादि सहायता द्वारा साधर्मिकों का उत्कर्ष उत्थान करते हैं। ★ विजय-प्रेम-भुवनभानु, जयघोष सूरीश्वरजी म. के Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005120
Book TitleJinshasan na Zalhlta Nakshatro Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year2011
Total Pages720
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size35 MB
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