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________________ ઝળહળતાં નક્ષત્રો २९ द दर्शन दुर्लभ जिनेश्वरना, पामता भाग्यवंता रे । ३० ध धर्मधोरी मार्गदेशक, एकमात्र अरिहंता रे ॥ ३१ न नश्वर छे आ दुनिया फानी, जिनजी भवना अंता छे । परमगुरु परमेष्ठि पदमां, परमेश्वर अरिहंता छे ॥ ३२ प ३३ फ फरियाद तीर्थपति पासे, ३४ व नाना आ फरजंदजी | बचपन मासुम क्या गयुं ? भक्ति पण गइ छंदनी ॥ भगवंत तमोने जे भजे छे, संसार पार पामे ते । मनन चिंतन तत्त्व केलं, मनीषा तुज नामे छे || यजमान आप हुं महेमान, भूख भांगजो धर्मनी । ३८ र रक्षणदाता - करुणावत्सल, गति सुधारो कर्मनी ॥ ३७ य ३५ भ ३६ म Jain Education Intemational નવકાર સાધનાપીઠ (हावार ४१ श ४२ स ३९ ल लक्षण हजारने आट देहे, अनंतगुण-आलय छो । ४० व वचनातिशय, ज्ञानातिशय, पूजातिशय आश्रय छो ॥ शरण श्रेष्ठ भक्तवत्सल, अपायापगमातिशयदी । समताधारी, शांतस्वरूपी, गौरववंता जयजयथी ॥ 333 ४३ ष षटकाय क्षमा, खम्मा खम्मा, भावनुं भेटणुं लाव्यो छु । ४४ ह हकिम रागरोगना आप, हमदर्दी लेवा आव्यो छु । उपरोक्त भक्तिगीतमें तीर्थंकर भगवंतके १२ गुणोंका वर्णन है, एवं नवकार आराधकोंके लिए परमात्माक पावनकारी प्रार्थना भी है। अनेक रागोंमें, समूहमें गानेसे भावोंकी अवश्य शुद्धि प्राप्त हो सकती है ( भक्ति करतां छूटे मारा प्राण- प्रभुजी एवं मांगुं छं.) 1 -: अनुमोदक : नेमिप्रेमी आराधक मंडळ, मुंबई, पूना, अहमदनगर, औरंगाबाद गुरुकृपावले नेमिप्रेमी हुं संसार सागर तरवाने । अरिहंत-अरिहंत जाप जपुं हुं, आतमशुद्धि करवाने ॥ જ્યોતિષ અનુસાર નવગ્રહ છે નવકારના જાપથી ગ્રહનું અનિષ્ટ ફળ નિવારી શકાય છે. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005120
Book TitleJinshasan na Zalhlta Nakshatro Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal B Devluk
PublisherArihant Prakashan
Publication Year2011
Total Pages720
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size35 MB
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