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ઝળહળતાં નક્ષત્રો
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(२) अ से ह "अरिहंत-अरिहंत
(राग : धन्याश्री- आतमभक्ति) काव्यकार : प.पू. जयदर्शन विजयजी म.सा. (नेमिप्रेमी)
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अ | अरिहंत-अरिहंत जाप जपं छु, आतमशुद्धि करवाने। आ आणारंगी समकितसंगी, आतमज्ञानी बनवाने॥ इ | इच्छा-ईप्सा अंतरकेरी, अरिहंत जिनने भजवाने। ई । ईश्वर-विश्वेश्वर विभुजी, मोहने-माया तजवाने ।।
उत्तम पुरुषोत्तम ध्याने, झंखु आत्मिक-भक्ति।
ऊज्वल चित्ते प्रगटावीरों, संसार भाव विरक्ति ।। ए | एकाग्र मने सन्मुख देखुं, समवसरणे विराजो छो। ऐ | ऐश्वर्य अद्भुत केबु-के, पांत्रीस वाणीए गाजो छो।। ओ| ओजस चोत्रीस अतिशयना, त्रिभुवनमां तमे राजो छो।
औ| औदार्य गुणभंडार योगी, दोषोथी नाराजो छो॥ | अं| अंध हतो हुँ मिथ्यात्वथी, त्यारे तमे उगार्यो छ।
ज्ञ | ज्ञप्तिज्ञान मुजने अी, पामरने उपकार्यो छ। ऋ ऋषभदेवथी वर्धमान जेवी अनंत चोवीशी जुहारूं छु । | क्ष | क्षमामूर्ति विहरमान, वीस जिनजी ओवाळं छु।।
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નવકારના પ્રત્યેક અક્ષર ઉપર ૧૦૦૮
વિધા રહેલી છે
तसा मामलामा
ॐनमा आयरियाण
नमा उवज्डायाण
ॐनमा लाए सव्यसारण
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