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________________ लेखाङ्कः-३७९ । २३३ ( 11 ) श्री अकब्बरविजयमानराज्ये अग्रेह श्रीवइराटनगरे | पांडु पुत्रीयविविधावदातश्रवण ( 12 ) म्राद्यनेकगैरिकखानिनिधानीभूत समग्र सागरांवरे श्रीमालज्ञातीय संक्याणगोत्रीय सं नाल्हा (1) श्रीदेल्हीपुत्र सं ० ईसर भार्या झवकू पुत्र सं० रतनपालभार्या मेदाई पुत्र सं ० देवदत्त भार्याम्पू पुत्र पावसा ( 14 ) टोडरमल सबहुमानप्रदत्त सुबहुग्रामस्वाधिपत्याधिकारीकृत स्वप्रजापालनानेकप्रकार सं० भारमल भा ( 15 ) इंद्र राजनाम्ना प्रथमभार्या जयवंती द्वितीयमार्यादमा तत्पुत्र सं० चूहडमल्ल | स्वप्रथम लघुभ्रातृ सं० अज [यराज ] (16) "रीनां पुत्र सं० विमलदास द्वितीय भार्या नगीनां स्वद्वितीय लघुभ्रातृ सं० स्वामीदास भार्या ( 17 ) कां पुत्र सं० जगजीवन भार्या मोतां पुत्र सं० कचरा स्वद्वितीयपुत्र सं ० चतुर्भुज प्रभृति समस्त कुटुंब [ व ] ( 18 ) इराद्रंगस्वाधिपत्याधिकारं बिभ्रता स्वपितृनामप्राप्तरीलमयश्री पार्श्वनाथ १ रीरीमयस्वनामधारितश्रीश्री ( 19 ) चंद्रप्रभ २ भ्रातृअजयराजनामधारितश्री ऋषभदेव ३ प्रभृतिप्रतिमालंकृतं मूलनायक श्रीविमलनाथविवं ( 20 ) स्वश्रेयसे कारितं ! बहुलतमवित्तव्ययेन कारित श्रीइन्द्रविहारापरनाम्नि महोदयप्रासादे स्वप्रतिष्ठा (ष्ठा) यां Jain Education International 304 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005113
Book TitlePrachin Jain Lekh Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJinagna Prakashan Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages780
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size12 MB
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