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________________ २३२ प्राचीन जैनलेखसंग्रहे वैराटनगरस्थजिनालयप्रशस्तिः । ( ३७९ ) (1) ॥ ६० ॥ श्रीहीरविजयसूरीश्वर गुरुभ्यो नमः ॥ स्वस्ति श्रीमन्नृ ] ( 2 ) -- शाके १५०९ प्रवर्तमाने फाल्गुनशुक्ल द्वितीयायां रवौ (3) अखिल प्रतिपक्षक्ष्मापालचक्रवाळत मोजालरुचिरतरचरणकर्म [ल] ( 4 ) ..... प्रसरतिलकित नम्रीभूत भूपालभालमचलवलमाक्रमकृतचतुर्द्विग्[विजय ] ( 5 ) .... न्यायैकधुराधरण धुरीण दुरपासनमादिशदिव्यसन निराकरण प्रवीण ( 6 ) ण गोचरीकृतप्राक्तननलनरेंद्र रामचंद्रयुधिष्ठिरविक्रमादित्यप्रभृतिमहीमहें [द्र ] ० (7) कीर्तिकौमुदीनिस्तंद्र चंद्र श्रीहीर विजयसूरींद्रचंद्र चारुचातुरी चंचुरचतुरनरानिर्वच[नी) ( 8 ) न प्रोद्भूतप्रभूततर दयार्द्रतापरिणतिप्रणीतात्मीय समग्र देशमतिवर्षपर्युषण पर्व ( 9 ) जन्ममास ४० रविवासर ४८ संबंधिषडधिकशतदिनावधिसर्वजन्तुजाताभयदानफुर [मान] (10) बली वर्ण्यमानप्रधानपीयूष विशदतमनिरपवादयशावादधर्मकृत्य Jain Education International ३०४ For Private & Personal Use Only • देदीप्यमान www.jainelibrary.org
SR No.005113
Book TitlePrachin Jain Lekh Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJinagna Prakashan Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages780
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size12 MB
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