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प्रवर्तक श्री कान्तिविजयजी महाराज.
जेसना सहवास योगथी अने दरेक जातनी भददथी मने आ प्रवृत्ति स्वीकारवामां विशेष प्रोत्साहन मळेलं होबाथी तेमना ए उपकार भावनी चिरस्मृतिने कृतिमां राखवा माटे नम्रता अने कृतज्ञता पूर्वक आ संग्रहने हुँ तेओश्रीना करकमलमां सादर
समर्पित करूं
विनीत-जिनविजय.
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