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________________ १५२ प्राचीनजैनलेखसंग्रह (५) श्रीसंभवः सा डुंगरसुत सा० वाधा कारितः । श्रीः।। ( २५६ ) ( दक्षिणपार्चे ) ( वामपार्वे ) (1) श्रीसर्वज्ञाय नमः ॥ -पु० राज्ये..........."राजा विक्रम नृप संवत् १५२५ वर्षे-भा० मूल्ली महं०xभा० भोली (2) महं० नाथा गहिला तत्पुत्राको मुंद्र भार्ये हासी............. -मं० सगरपुत्रौ......."मं० सुंद्रगदाभ्यां श्रीअर्बुदाधिपति दे(3) श्रीराजधर सायर श्री वडा श्रीवीसापुत्र कुंभा पुत्र देवडा चुंडा राजपुत्र राजधर प्रति... श्रीरामदास............... -स्तरेण पत्तन अहम्मदावाद (4) आदेशात् प्रथमतीर्थ-स्तंभतीर्थ इलादुर्ग प्रमुख....... करबिंब [ सपरिक ] रं १०८. -च प्रतिष्ठितं श्रीतपागच्छ जब स्थान श्री नायक श्रीदेवसुंदरसूरिपट्टालंकार सह यात्रायै............................श्रीश्री-......................... | -सूरि सोमजयसूरि महो-श्रीसोमसुंदरसूरि श्रीमुनि पाध्याय श्रीजिनसोमगाणि पंडित सुंदरसूरि श्रीजयचंद्रसूरि तत्पट्टे बार तपसत्यरत्नगणि प्रमुख साधु साध्वी रत्नशेखरसूरि" यथाविधि श्रीसंघ परिवृतैः ॥ - * * ૨૨૪ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.005113
Book TitlePrachin Jain Lekh Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJinagna Prakashan Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages780
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size12 MB
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