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________________ लेखाङ्क: - १२७ - १२९ । १११ स्वात्मनो श्री अभिनंदननाथबिंबं मातृ नायिकिः धनेश्वर भार्या धनश्री Sse कारिता (तं) प्रतिष्ठिता (तं) श्रीनागेंद्र गच्छे श्री विजय सेन सूरिभिः ॥ छ ॥ ( १२७ ) संवत् १२९३ मार्ग सुदि १०. नागपुरीय वरहुडिसंतानीय सा० नेमडपुत्र सा० राहड लाहडेन स्वभार्या लखाश्री श्रेयोर्थ नेमिनाथविं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीविजयसेन सूरिभिः ।। ( १२८ ) 0 सं० १३८९ वर्षे फागण सुदि ८ श्रीकोरंटकीयगच्छे महं पुनसीह भार्या पुनसिरि सुत घाघलेन भ्रातृ मूल गेहा रुदा ..... सहितेन मुंडस्थल सत्क श्रीमहावीरचैत्ये निज मातृपितृ श्रेयोऽर्थ जिनबिंबं ..... ( १२९ ) संवत् १५१५ वर्षे महा वदि ८ गुरौ श्री अर्बुदाचले देउलवाडा वास्तव्य श्री माग्वाज्ञातीय व्य० लाहाभार्या वल्लीसुत भार्या रूपीनाम्न्या भ्रातृ व्य० आल्हण चाचग आल्हासुत व्य० लाखा भार्या देवी सुत खीमा मोकल........ ..... राजीमती प्रतिमा कारिता । प्रतिष्ठिता श्रीतपागच्छे श्रीश्री श्री सोमसुंदरसूरिशिष्य श्रीमुनिसुंदरसूरि जयचंद्रसूरि शिष्य श्रीश्रीश्री रत्नशेखरसूरिभिः''''''''श्रीउदयनंदिनूरि श्रीलक्ष्मीसागरसूरि ........... "सूरि सहितैः ॥ Jain Education International १८३ ********* For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005113
Book TitlePrachin Jain Lekh Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherJinagna Prakashan Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages780
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size12 MB
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