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ઐતિહાસિક સજાઝાયમાલા.
२८ श्रीविजयसेनसूरि स्तुति.
गगनमंडलि रहइ अजब जब लगि,
सबल सकल सुखकारिणी जोति रविचंदकी; घरति धरणीतलं गहनगिरिसंकुलं
जबलगि पीठपरचंडभुजगिंदकी; जबलगि चतुर चिहु पंड चित चमकती,
राजकी थिति सुरलोकि सुरइंदकी तबलगि हेम कहि हीरजी पट्टि प्रभु
प्रगट पदवी विजयसेनसूरिंदकी. सवालरकसोवीर सिंधु सरसा सोरठ सण
मरु मालव मेवाड मोट महरट्ट मगहि भण, कामरूप कालिंग कीर कुंतल कण कुंकण
गूजर गउड गिरिंदगंध गंगातटगंजण; इणि दशि दसोदिसि जयकरी हेमविजय कवियण कही, श्रीविजयसेनसूरिंदकी कीरति कमला गहगही. ६
२६ श्रीनेमनाथ स्तुति.
घन घोर घटा उनयी जुनयी इतति उततिं चमकी बिजली, पियु रे पियु रे षपिहा बिललाति जुमोर किंगार करंति मिली;
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