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________________ વિરાવલી पत्नी सुमित्रा ने भगवान श्री महावीर स्वामी के आयाग पट्टों का निर्माण करवाया था. यह लेख प्राकृत भाषा में हैं. अंग्रेज विद्वान कनिंधम ने बताया कि- मथुरा में आज तक करीब १०० जितने प्राचीन शिलालेख व १५०० जितनी पाषाण की जिन मूर्तियां बरामद हुई है, जिनका रचना काल ई.स.पू. तीसरी शताब्दी से लेकर ११वीं शताब्दी तक का है, यानी सभी रचनाएँ करीब १४०० वर्ष में बनायी गयी है । मथुरा से प्राप्त इन प्राचीन रचनाओं में भव्य जिन मंदिरों के तोरणों, जिन मूर्तियां, वेदिका, स्तम्भों, कमल में सर्जित जिन मूर्ति, उत्किर्ण आयाग पट्टों, सर्वतोभद्र प्रतिमाओं इत्यादि मुख्य है. __नोंधपात्र बाबत यह है कि- कुछ शिलालेखों से यह ज्ञात होता है कि - जिन मंदिर व मूर्ति निर्माण के धन का व्यय अन्य उदार दिल श्रावकों के साथ जैन श्रमणों के सदुपदेश से प्रभावित होकर गणिकाओं ने भी इनके निर्माण में अपना धन देकर सहयोग दिया था. एवं अपना अनैतिक जीवन व्यवहार छोडकर स्वयं को बारह व्रतों में जोडा था और जिन पूजा में अपना विश्वास प्रगट किया था. इतिहासविद् भगवानलाल इन्द्रजी के अनुसार जैन धर्म में समर्पित इन गणिकाओं के नाम - नंदा, वासा, दंडा, लोगशोभिका इत्यादि है. ई.सन. ८२ अर्थात् शक संवत् ४ के एक शिलालेख में सम्राट कनिष्क व साथ में जैन श्रमण पुष्यमित्र का उल्लेख है. इस शिलालेख में गण, कुल व शाखाओं की भी चर्चा है. अर्थात् गण-कुल-शाखा की जैन धर्म में उल्लेख परंपरा सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के समकालीन १४ पूर्वधर आचार्य श्री भद्रबाहुस्वामी से (ई.सन्.पू. तीसरी शताब्दी से) प्रारम्भ हुई है, क्योंकि भगवान महावीर देव के बाद १० वर्ष बाद श्री भद्रबाहुस्वामी म. का स्वर्गवास हुआ था. राजा कनिष्क, उसका उत्तराधिकारी वसिष्क, उसका पुत्र हुविष्क के काल के शिलालेखों से अनेक गण, कुल और शाखाओं के उल्लेख के साथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005025
Book TitleSthaviravali ane Teni Aaspas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunsundarvijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2007
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size11 MB
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