SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शतकोटी देवतान् आकर्षय २ सहस्त्रकोटी पिशाच देवतान् आकर्षय २, कालराक्षस ग्रहान् आकर्षय २, प्रेतासिनि ग्रहान् आकर्षय २, वैतालो ग्रहान् आकर्षय २, क्षेत्रवासी ग्रहान् आकर्षय २, हन्तुकाम ग्रहान् आकर्षय २, अपस्मार ग्रहान् आकर्षय २, क्षेत्रपाल ग्रहान् आकर्षय २, भैरव ग्रहान् आकर्षय २, ग्रामादि देवतान् आकर्षय २, गृहादि देवतान् आकर्षय २, कुलादि देवतान् आकर्षय २, चंडिकादि देवतान् आकर्षय २, शाकिनि ग्रहान् आकर्षय २, डाकिनि ग्रहान् आकर्षय २, सर्वयोगिनी ग्रहान् आकर्षय २, रणभूत ग्रहान् आकर्षय २, रज्जूनि ग्रहान् आकर्षय २, जल ग्रहान् आकर्षय २, अग्नि ग्रहान् आकर्षय २, मूक ग्रहान् आकर्षय २, मूर्ख ग्रहान् आकर्षय २, छल ग्रहान् आकर्षय २, चोरचिंता ग्रहान् आकर्षय २, भूत ग्रहान् आकर्षय २, शक्ति ग्रहान् आकर्षय २, मातंग ग्रहान् आकर्षय २, चांडाली ग्रहान् आकर्षय २, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, भव, भवान्तर, स्नेह वैर, बंध सर्व दृष्ट ग्रहान् आकर्षय २, कम्प २, मृत्योरक्षय २, ज्वरं भक्षय २, अनलविषं हर २, कुमारी रक्ष २, योगिनि भक्षय २, शाकिनि मर्दय २, डाकिनी मर्दय २, पूतनी कम्पय २, राक्षसी छेदय २, कोलिका मुद्रा दर्शय २, सर्व कार्यकारिणी, सर्व ज्वर मर्दिनी, सर्वशिक्षा जनप्रतिपादिनी एहि २, भगवती ज्वालामालिनी एकाह्निकं, द्वयाह्निकं, त्र्याह्निकं, चातुर्थिकं, वात्तिकं श्लेष्मिकं पैत्तिकं २, सन्निपातिकं (वेला), ज्वरादिकं पात्रे प्रवेशय २, ज्वलिज्वलि ज्वालय २, मुंच २, मुंचावय २, शिरं मुच २, मुखं मुंच २, ललाटं मुंच २, कंठं मुंच २, बाहुं मुंच २, हृदयं मुंच २, .८० . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004960
Book TitleMaro Swadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaratnavijay
PublisherShraman Seva Parivar
Publication Year
Total Pages244
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy