SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लुलायमान महिषासुर मर्दन, दक्षभूत, महामहिष वाहिनि, ताराधर तारे नीहार पटीत पयः पूर कर्पूर शुभ्रायमान विवल धवल गात्रे, भय काल रुद्र रौद्रावलोकित, भालेनेत्रानल विस्फुलिंग समूह सन्निभ ज्वालावेष्टित दिव्य देहिनि, कुलशैल निर्भेदिनी, कृत सहस्त्र धारायुक्त महाप्रभा मण्डल मण्डित, कृपाणि भ्राज दोर्दण्डे देवि, ज्वालामालिनि अत्र एहि २, पिण्ड रूपे एहि २, नव तत्त्व देहिनि, महामहित मेखला कलित प्रतापे ऐहि २, संसार प्रमर्दिनि ऐहि २, महामहिषवाहने एहि २, कटक कटिसूत्र कुण्डलाभरण भूषिते एहि २, घनस्तनिं किंकिणि नुपूरनादे एहि २, महामहित मेखला सूत्रे एहि २, गरुड गंधर्व देवासुर समिति पूजित पादपंकजे एहि २ भव्यजन संरक्षिणि एहि २, महादुष्ट पर्दिनि एहि २, मम ग्रहाकर्षिणी एहि २, ग्रहानुबंधिनी एहि २, ग्रहानुच्छेदिनि एहि २, ग्रहकाल मुखि एहि २, ग्रहोच्चाटनि एहि २, ग्रहमारिणि एहि २, मोहिनि एहि २, स्तंभिनि एहि २, समुद्रधारिणी एहि २, धनु २ कम्प २, कम्पावय २, मंडल मध्ये प्रवेशय २, स्तम्भय २, ॐ -हाँ -हीँ -हूँ - हाँ -हः आह्वानन, जलं गृहाण २, गंधं गृहाण २, अक्षतं गृहाण २, पुष्पं गृहाण २, चरुं गृहाण २, धूपं गृहाण २, दीपं गृहाण २, फलं गृहाण २, अर्घ्यं गृहाण २, ॐ हम्ल्व्यू महादेवि ज्वालामालिनि -हाँ क्लीं ब्लूँ द्राँ द्रौं-हाँ-ही-हूँ-हौं -हः देव ग्रहान् आकर्षय २, ब्रह्मा विष्णु रुद्रेन्द्रादित्य ग्रहान् आकर्षय २, नाग ग्रहान् आकर्षय २, यक्ष ग्रहान् आकर्षय २, गंधर्व ग्रहान् आकर्षय २, ब्रह्मराक्षस ग्रहान् आकर्षय २, भूत् ग्रहान् आकर्षय २, व्यंतर ग्रहान् आकर्षय २, सर्व दुष्ट ग्रहान् आकर्षय २, .७९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004960
Book TitleMaro Swadhyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaratnavijay
PublisherShraman Seva Parivar
Publication Year
Total Pages244
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy