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हूँ हाँ ह: क्ष स्त्रिलोकी ममृत जलधरा वारुणैः प्लावयन्ती झाँ झाँ हूँ सः सुबीजै: प्रबल बल भया त्राहि मां देवि चक्रे ॥५॥ आँ कों ह्रीं क्षुयुताँगे प्रलय दिन करास्तस्य कोटि प्रकाशे, अष्टौ चक्राणि धृत्वा विमलः निज भुजैः पद्ममेकं फलं च । द्वाभ्यां चक्र करालं निशित चल शिखं तार्क्ष्य रूढ़ा प्रचण्डा हाँ हाँ हाँ क्षोभकारी र र र र रमणे त्राहि मां देवि चक्रे ॥६॥ खूं धुँ हुँ धुँ विचित्रे त्रिनयन नयने नाद बिन्दूग्र नेत्रे,
चूँ चूँ चूँ वज्र धारा ल ल ल ल ललिते नील केशालि केशे । चूँ चूँ चूँ चक्र धारा चल चल चलिते नूपुरै लेलि लीले । श्रीं ह्रीं ह्रीं सुकीर्तिः सुरवर नमिते त्राहि मां देवि चक्रे ॥७॥ ॐ ह्रीं फट्कार मन्त्रे हृदय मुपगते संधि वश्याधिकारे, हाँ ह्रीं क्लीं क्लिं सुघोषे प्रलय घन घटा टोप शब्द प्रनादे । वाँ फाँ क्रोध मूर्ते धगधगत शिखे ज्वालिनि ज्वाल माले रौद्रे हुँ कार रूपे प्रकटित दर्शने त्राहि मां देवि चक्रे ॥८॥
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