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श्री चक्रेश्वरी स्तोत्र श्री चक्रे चक्र भीमे ललित वर भुजे लीलया लालयन्ती, चक्रं विद्युत्प्रकाशं ज्वलित शत शिश्वे खे खगेन्द्राधिरूढ़े। तत्त्वैरुद्भूत भासा सकल गुण निधे मन्त्र रूप स्वकान्ते कोट्यादित्य प्रकाशे त्रिभुवन विदिते त्राहि मां देवि चक्रे ॥१॥ क्लीं क्लीनें क्लिँ प्रक्रीले किलि-किलित खे दुंदुभिध्वाननादे, आँ हुँ हुँ ह्रीं सु चक्रे क्रमसि जगदिदं चक्र विक्रान्त कीर्तिः । क्षाँ आँ भासयंति त्रिभुवन मखिलं सप्त तेजः प्रकाशे क्षा क्षीं छू विस्फुरन्ति प्रबल बल युते त्राहि मां देवि चक्रे ॥२॥ यूँ झीँ दूँ पूँ प्रसिद्धे सुजन जन पदानां सदा कामधेनुः, यूँ क्ष्मी श्री कीर्ति बुद्धि प्रथयति वरदे त्वं महा मन्त्र मूर्ते । त्रैलोक्यं क्षोभयंति कुरु कुरु हरहं नीर नाद प्रघोषे क्ली क्लिँ ह्रीं द्रावयन्ती द्रुत कनक निभे त्राहि मां देवि चक्रे ॥३॥ ॐ हूं द्राँ ह्रीं सुबीजैः प्रवर गुण धरै र्मोहिनी शोषणी त्वं, शैले-शैले नटन्ती विजय जयकरी रौद्र मूर्ते त्रि नेत्रे । वज्र क्रोधे सुभीमे रहसि करतले भ्रामयन्ति सुचक्रं रूँ रूँ राँ हः कराले भगवति वरदे त्राहि मां देवि चक्रे ॥४॥ ॐ ह्रीँ हुँ हुँ सुहर्षे ह ह ह ह हिम कुन्देन्दु संकाश बीजैः, हाँ ही हूँ क्षः सुवर्णैः कुवलय नयने द्विद्रुमां द्रावयन्ती ।
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